तुम मादक मिर्गनी हो
मेरे योवन के जंगल का
कैसे में तुमको पाऊँ प्रिय्वंद्नी
प्रेम में अग्नि का
तू कस्तूरी की दीवानी
में तेरे अधरों की खुशबू का
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी
श्रींगार से योवन का ..
चंचल चितवन तेरे नैन नशीले
मुख सजा होठ है गिले
पीले पीले गिले गिले
महुआ सी तेरे आलिगन की खुशबू
खींचे है मोहे बिन डोर ओ संगनी
महक में योवन का
मोह तेरे मिर्गनी
प्रेम में अग्नि का
तू निर्मल काया है जल का
में एक पत्थर हूँ तेरे धारा का
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी
श्रींगार से योवन का ..
तेरे गोरी बाँहों की नाजुकता
मन में छूने को उठाये उत्सुकुता
ले कदम मेरे बढ़ गए है उस ओर
जिस ओर जाने को दिल नहीं रुकता
कैसे में रोकूँ इन सब से खुद को कादम्व्नी
चाहत में तेरे सांसों का
बता में कैसे बंध जाऊं
मोह तेरे मिर्गनी
प्रेम में अग्नि का
तू निर्मल काया है जल का
में एक पत्थर हूँ तेरे धारा का
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी
श्रींगार से योवन का ..
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--अजय ठाकुर, नई दिल्ली
" प्रेम की मादकता "///अजय ठाकुर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 21, 2012
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