
सामने ना आ जाए,
डर लगता है...
ब्रश करने वक्त टूथपेस्ट कहीँ खत्म ना हो जाए,
डर लगता है...
समय पर स्कूल जा पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
स्कूल मेँ सबको इमप्रेश कर पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
होमवर्क के लिए आज बच जाएँगे
या फिर से होगी पिटाई,

डर लगता है...
घर वापस आने पर
माँ कुछ अच्छा खिलाएगी
या फिर वही रोज-रोज का रूखा सूखा,,
डर लगता है...
शाम को खेलने जा पाएँगे,
और अगर गए भी तो
अच्छा खेल पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
रात को खेलते-खेलते खा कर सो जाएँगे
या फिर कुछ पढना भी पड़ेगा,
डर लगता है...
कल सुबह जल्दी जगेँगे
या फिर से देर होगी,
डर लगता है...
कल कुछ अच्छा होगा या फिर से
वही डरावनी कहानी होगी,
डर लगता है...
हमेँ साँस लेने की आजादी है,
पर फिर भी हम, पल पल मर रहेँ है...
पता नहीँ, हम इतना क्योँ डर रहे है...???
--अमन कुमार,मधेपुरा.
"डर लगता है"///अमन कुमार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 13, 2012
Rating:

Awesome effort...........
ReplyDeleteNic words
बहुत अच्छा अमन कुमार.....
ReplyDeleteमगर इसी डर के आगे जीत हैं....
Sonu Sir,,
ReplyDeletekeep drinking Mountain Dew. .and
keep reading my poems. . . bcoz,
DArrrr Ke aage jeet hai. . .
I fail to understand is it poetry? Or we have started calling prose a poetry .
ReplyDeleteAwesome said
ReplyDeleteKeep it going
we support u and want your poem, ak.....................
Lv u and yr poems
ReplyDeleteKamaal ke poet ho bhai tum
ReplyDeleteperfect
ReplyDeleteWhat the lines are..........great..............
आप सबोँ को धन्यवाद ।
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