"डर लगता है"///अमन कुमार

सुबह जगने पर कोई मनहूस
सामने ना आ जाए,
डर लगता है...
ब्रश करने वक्त टूथपेस्ट कहीँ खत्म ना हो जाए,
डर लगता है...
समय पर स्कूल जा पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
स्कूल मेँ सबको इमप्रेश कर पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
होमवर्क के लिए आज बच जाएँगे
या फिर से होगी पिटाई,
डर लगता है...
घर वापस आने पर
माँ कुछ अच्छा खिलाएगी
या फिर वही रोज-रोज का रूखा सूखा,,
डर लगता है...
शाम को खेलने जा पाएँगे,
और अगर गए भी तो
अच्छा खेल पाएँगे या नहीँ,
डर लगता है...
रात को खेलते-खेलते खा कर सो जाएँगे
या फिर कुछ पढना भी पड़ेगा,
डर लगता है...
कल सुबह जल्दी जगेँगे
या फिर से देर होगी,
डर लगता है...
कल कुछ अच्छा होगा या फिर से
वही डरावनी कहानी होगी,
डर लगता है...
हमेँ साँस लेने की आजादी है,
पर फिर भी हम, पल पल मर रहेँ है...
पता नहीँ, हम इतना क्योँ डर रहे है...???

 
--अमन कुमार,मधेपुरा.
"डर लगता है"///अमन कुमार "डर लगता है"///अमन कुमार Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 13, 2012 Rating: 5

9 comments:

  1. Awesome effort...........
    Nic words

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  2. बहुत अच्छा अमन कुमार.....

    मगर इसी डर के आगे जीत हैं....

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  3. Sonu Sir,,
    keep drinking Mountain Dew. .and
    keep reading my poems. . . bcoz,
    DArrrr Ke aage jeet hai. . .

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  4. I fail to understand is it poetry? Or we have started calling prose a poetry .

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  5. Awesome said
    Keep it going
    we support u and want your poem, ak.....................

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  6. Lv u and yr poems

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  7. Sadhna AvasthiTuesday, 22 May, 2012

    Kamaal ke poet ho bhai tum

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  8. perfect
    What the lines are..........great..............

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  9. आप सबोँ को धन्यवाद ।

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