अड़हुल की पंखुरी को पिता का नाम नहीं |
पंकज भारतीय/११ जनवरी २०१२
“इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं,
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या फरार.”
सचमुच कानूनू दांव-पेंच और सामजिक संवेदनहीनता के बीच सुपौल के महीपट्टी की अड़हुल देवी (२१ वर्ष) अपनी नन्ही बेटी पंखुरी को गोद में लिए न्याय के लिए दर-दर भटक रही है.बिन ब्याही माँ बनने का बोझ लिए अड़हुल अपनी बेटी को बाप का नाम दिलाना चाहती है.सच पुलिस से लेकर तथाकथित बुद्धिजीवियों तक को पता है,लेकिन पुलिस को गवाह चाहिए तो बुद्धिजीवियों की कुछ अपनी मजबूरियां होती है.
अड़हुल जब गर्भवती हुई थी तो सामजिल स्तर पर प्रयास शुरू हुआ कि प्रेमी विजेन्द्र यादव से उसकी शादी हो जाय.बात बनी भी और शादी की तारीख भी ५ अगस्त २०१० तय हुई.लिकिन ऐसा नहीं हो सका.उसके बाद जो कुछ उसी दिन हुआ वह सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है.लड़की और लड़का पक्ष के बीच मारपीट हुई और इसमें विजेन्द्र के मामा विद्यानंद की मौत हो गयी.अड़हुल का घर बसाने की प्रक्रिया अधर में चली गयी और अब दोनों पक्ष के कुल ९ लोग सलाखों के पीछे हैं.
जानकार बताते हैं कि इस प्रकरण की दिशा ग्रामीण राजनीति की वजह से बदली.कुछ पेशेवर ग्रामीण राजनीतिज्ञों ने इसे उलझाकर रख दिया.साथ ही मुखिया पद की लड़ाई का घालमेल यहाँ हुआ.यही वजह है कि जेल की सलाखों के पीछे दोषियों के साथ निर्दोष भी राजनीति की कीमत अदा कर रहे हैं.
अड़हुल ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक छोटी सी भूल जी का जंजाल बन जाएगा.प्रेमी विजेन्द्र भले ही बेवफा साबित हुआ हो,अड़हुल ने बच्ची को जन्म देकर दोहरी मानसिकता वाले सफेदपोशों के मुंह पर तमाचा ही जड़ा है.लेकिन वह इस तमाचे की कीमत अदा कर रही है.भाई रविन्द्र और पिता छक्कन प्रसाद तो जेल में है ही,प्रेमी विजेन्द्र यादव भी जेल में है.
अड़हुल ने पीएचसी में अपनी बच्ची को जन्म दिया.स्वास्थ्य विभाग ने तो हद ही कर दी.अड़हुल को अब तक अपनी बेटी पंखुरी का जन्म प्रमाणपत्र नहीं मिला है.अस्पताल यह नहीं मानता कि बच्ची का पिता विजेन्द्र है.अड़हुल अपनी बात पर कायम है.जो औरत बिन ब्याही माँ बनने की हिम्मत रखती है वह अपनी बात पर दृढ़ है तो आश्चर्य नहीं.अड़हुल को जननी बाल सुरक्षा से भी वंचित रखा गया है.
पूरे प्रकरण में कई अहम सवाल मौजोद हैं.९ माह तक बच्ची गर्भ में पलती रही तो फिर उसके पिता पर विवाद क्यों?सच जानने वाले क्यों नहीं सामने आ रहे हैं?जिन लोगों ने शादी में रुकावट डाली उसकी मंशा क्या थी?पंचायत चुनाव से इस घटना का क्या रिश्ता है?जानकार बताते हैं कि डी एन ए टेस्ट से पिता का निर्धारण संभव है.लेकिन अड़हुल ने भी ठान रखा है वे बेटी को पिता का नाम दिलाकर ही दम लेगी.अड़हुल ने कहा...थक जरूर गयी हूँ,नाउम्मीद नहीं हुई हैं,हर कोई जानता है मेरी बच्ची का बाप कौन है?
बिन ब्याही माँ भटक रही बच्ची को पिता का नाम दिलाने को
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 11, 2012
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