एक सच जीवन का

कांटों पर चलते हुए
जब भी किसी को ढूँढना चाहा,
तो बस दर्द को पास पाया,
गम की बाहों में जीते जीते,
खुशियों की परछाइयां भी छूट गयीं।
कुछ धुंधली तस्वीरें अब
साफ दिखने लगी हैं,
जबसे इन्सानियत
बाजारों में बिकने लगी हैं।
अब होंठ भी खामोशियों का साथ देते हैं,
अब दिल धडकता नही बस जीता है।
और आंखों ने भी
अन्धेरों से दोस्ती कर ली है,
अनचाही राहों की ओर बढते हुए
अब कदम डगमगाया नही करते,
अब ये सच जान गया है मन
कि बीते हुए पल वापस आया नही करते।
यादें मगर साया बनकर साथ चलती हैं,
खुशियों को पाने की चाह नही,
बस मौत को गले लगाने की चाह है,
कुछ दुख भरे लम्हे गुजर गये हैं,
कुछ वक़्त और बिताना है।
जीवन क्या है ये आज मैनें जाना है।


--प्रतीक प्रीतम,मधेपुरा
एक सच जीवन का एक सच जीवन का Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 04, 2012 Rating: 5

3 comments:

  1. जीवन क्या है ये आज मैनें जाना है।
    खुशियों को पाने की चाह नही,
    बस मौत को गले लगाने की चाह है,
    क्या ये जीवन है ?

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  2. its a gr8 poem....2day i know the true of life....thnx pratik jee

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