मुझे आज भी बहुत याद आती है वो,
कभी फज़र में ओस की बूंद की तरह,
कभी असर में खुदा इबादत की तरह,
ज़ेहन के गलीचों में
इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं
फिर भी यादों में मिल जाती है वो ...
आलम हुआ पड़ा है इस दिल का यूँ
चलता हूँ सुनी सड़क पे
खुद को समझ कर अकेला,
साथ देती कदमो में मिल जाती है वो ...
ना साज खलिश की परवाह नहीं करता दिल
कभी फज़र में ओस की बूंद की तरह,
कभी असर में खुदा इबादत की तरह,
ज़ेहन के गलीचों में
इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं
फिर भी यादों में मिल जाती है वो ...
आलम हुआ पड़ा है इस दिल का यूँ
चलता हूँ सुनी सड़क पे
खुद को समझ कर अकेला,
साथ देती कदमो में मिल जाती है वो ...
ना साज खलिश की परवाह नहीं करता दिल
अब तो ये सोच कर
की उम्र गुजारनी है तन्हाईयों के तले,
पर उसी तन्हाईयों को धुंध बनाके अपने यादों से,
ज़िंदगी का साथ देती मिल जाती है वो ....
बड़ी ही जालिम है ये याद उनकी,
जो बिना दस्तक किये ही
दिल में चली आती है,
सोचा कई बार कि रातों में
छुप कर सो जाऊ उनसे,
पर आँखे बंद करने पे
ख्वाब बनके नींदों में मिल जाती है,
ज़ेहन के गलीचों में इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं
फिर भी यादों में मिल जाती है वो .. !!
की उम्र गुजारनी है तन्हाईयों के तले,
पर उसी तन्हाईयों को धुंध बनाके अपने यादों से,
ज़िंदगी का साथ देती मिल जाती है वो ....
बड़ी ही जालिम है ये याद उनकी,
जो बिना दस्तक किये ही
दिल में चली आती है,
सोचा कई बार कि रातों में
छुप कर सो जाऊ उनसे,
पर आँखे बंद करने पे
ख्वाब बनके नींदों में मिल जाती है,
ज़ेहन के गलीचों में इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं
फिर भी यादों में मिल जाती है वो .. !!
--अजय ठाकुर, नई दिल्ली
यादों में मिल जाती है वो .. !!
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 05, 2011
Rating:
वह अजय ग्रेट यार, "जब कलम से लिखना चाहो तुम कुछ तो स्याही में शब्दों की तरह मिल जाती है वो"
ReplyDeleteप्रशान्त सरकार
भावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteशुक्रिया ... प्रशांत ओर सुषमा जी !!
ReplyDeleteदिल को ठीक उसी तरह आपकी कविता ने छू लिया जिस तरह न चाहते हुए भी हर बार वो आपकी यादों में मिल जाती है /बहुत अच्छी कविता /
ReplyDeleteशुक्रिया सत्य प्रकाश जी .. !!
ReplyDelete