सीडीपीओ यानी लाखों रूपये महीने घूस?(भाग-२)

कार्यसमय में बंद ICDS कार्यालय
राकेश सिंह/०३ नवंबर २०११
सेविका गायब:सर्फ दो बच्चों के साथ सहायिका
सूत्रों के अनुसार जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों में कुछ सालों से सीडीपीओ निर्बाध घूस कमा रही हैं.एक पूरा चैनल तैयार हो गया और सबों का कमीशन लगभग फिक्स हो गया.सब कुछ मजे से चलने लगा.इस पूरे चैनल में सहायिका का रोल सबसे निरीह प्राणी की तरह है जिसे सिर्फ खाना बनाने और उसके एवज में मिलने वाली राशि से ही मतलब होता है.हाँ, बोनस के रूप में खिचड़ी पकाने के क्रम में चार किलो चावल के बदले दो किलो चावल ही लगाती है और बचे दो किलो इनकी आमदनी मानी जाती है.सेविका भले ही छोटे पद पर हो,पर टीएचआर (टेक होम राशन) के पैसे बचने से इनका काम आसानी से चलता है.जिले के बहुत सारे केन्द्रों पर बच्चों की उपस्थिति काफी कम होती है पर ये रजिस्टर में ज्यादा दर्शाती हैं और पैसे का गलत हिसाब भी देती है.सीडीपीओ इस बात को जानती है और ये भी एक बड़ी वजह है कि सेविकाओं के लिए घूस की राशि इन्होने तय कर रखी है.
     जंगल के कानून के मुताबिक यदि चार जानवर मिल कर किसी शिकार को नोच कर खा रहे हैं और यदि पांचवां वहां खड़ा भी हो जाये तो सबसे ज्यादा खाने वाला उसपर गुर्रा उठता है.और पिछले तीन-चार महीनों से कुछ ऐसा ही आंगनबाड़ी केन्द्रों में भी हो रहा है.सरकार ने पिछले दिनों लेडी सुपरवाइजर(एलएस) की बहाली कर दी तो सीडीपीओ के लूट के खेल में थोड़ी मनोवैज्ञानिक बाधा उत्पन्न हो गयी.पर चूंकि अब तक बड़ा चैनल बन चुका होता है,अत: लूट के इस खेल में अब तक एलएस को इन्होने हाशिए पर धकेल रखा है.वैसे तो एलएस का काम काफी महत्वपूर्ण है.रोज ही आंगनबाड़ी केन्द्रों का पर्यवेक्षण करना और उसकी खामियों को उजागर करने व सुधार करवाने में भले ही इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो, पर लूट के इस बड़े खेल ने इनकी भूमिका और पद पर प्रश्नचिन्ह सा लगा दिया है.आइये, इसे उदहारण से समझते है.माना कि किसी आंगनबाड़ी केन्द्र पर सेविका ने बड़ी गडबड़ी कर रखी हो.एलएस ने इसे पकड़ा और ऊपर रिपोर्ट कर दिया.पर सेविका इस बात को बखूबी जानती है कि एलएस के रिपोर्ट से उसका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है.चूंकि सीडीपीओ जब सेविका से घूस खाती हो तो उसे बचाना भी उसका धरम और करम बनता है.यानी इन सीडीपीओ ने एलएस का काम यहाँ बिजी फॉर नथिंग बना कर छोड़ा है.वैसे भी सूत्रों का मानना है कि जब सीडीपीओ ये दावा करती है कि एक हिस्सा वो ऊपर भी देती है तो ऐसे में एलएस की ज्यादा होशियारी उसकी नई नौकरी के लिए खतरनाक भी हो सकती है.
   घूस के इस खेल में सीडीपीओ और जुड़े अधिकारियों के दिल की धड़कन सबसे ज्यादा तब तेज होती है जब नए आंगनबाड़ी केंन्द्र खोलने की स्वीकृति मिलती है.(क्रमश:)
(अगले भाग में पढ़ें नए आंगनबाड़ी केन्द्र यानी बीसों अंगुलियां घी में)
सीडीपीओ यानी लाखों रूपये महीने घूस?(भाग-२) सीडीपीओ यानी लाखों रूपये महीने घूस?(भाग-२) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 03, 2011 Rating: 5

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