हुई थी जब मेरी सगाई,
ढेर सारे उपहार मिले थे.
घड़ी, अंगूठी, चेन सोने की,
सेकेंडहैंड दो कार मिले थे.
संपत्ति. शिक्षा. सुंदरता के साथ
अच्छा घरवार मिला था.
हो गयी शादी धूम-धाम से
छलनी,कलछी, चकले दो
बेलन चार मिले थे.

किट बिलकुल तैयार मिले थे
तब मुझे समझ न आया
ये गृह-युद्ध के हथियार मिले थे.
साले-सालियाँ-सलहजों का
मुझे खूबसूरत संसार मिला था,
पुराण पंथी पितामह महारानी जी का
छूकर पैर उनसे आँखें मिलाते
मेरा कलेजा दहल जाता था
सुन्दर सपना ससुराल का
मिट्टी में मिल जाता था.
आया वक्त ऐसा भी,
हमदोनों के बीच खूब तकरार हुआ
झूठ न बुलवाए खुदा तो बोलूं,
मुझपर उसी बेलन से वार हुआ.
धोखा खाया जिंदगी में,
जीना मेरा दुश्वार हुआ,
दो-चार हो तो गिनवाऊं भी
समस्याओं का अम्बार हुआ.
वेतन के दिन बेचारी जेब पर
हमला बार-बार हुआ है.
मना किया तो महारानी के
व्यंगबाणों का बौछार हुआ है.
खेरता हूँ जीवन नैया ,
सड़ा गला पतवार मिला है,
रोता हूँ छुप-छुप कर मैं,
मुझे कैसा कारागार मिला है?
--पी० बिहारी ‘बेधड़क’,अधिवक्ता,मधेपुरा
(संपर्क:९००६७७२९५२)
कैसा कारागार मिला है?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 07, 2011
Rating:

No comments: