परग्रही का गुलाम-विज्ञान कथा

आज से अपने बचपन के अतीत को भूल चूका हूँ | जबकि मै भूल नहीं पा रहा था | आज हमारी उम्र ४२ शाल के लगभग है और हमारे साथ मेरा परिवार है, मै और मेरी पत्नी और तीन छोटी छोटी बच्चियां है मै बहुत सुखी हूँ |मुझे क्या चाहिए जितना मुझे चाहिए वो मिल जाता है ,उसी मे मै खुश रहता हूँ |लेकिन अचानक एक दिन एक खबर ने मुझे अपने बचपन की घटना जो खुद मुझ पर घटी थी वो याद आ गई जिसे मै याद करना नहीं चाहता था |मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है की वह घटना हमारे साथ घटी थी| मै आज भी दहल जाता हूँ |मेरा हाँथ पावं फूल जाते है |मुझे अफसोश होता है की उस खबर को क्यों पढ़ा ? एक दैनिक पत्र मे छपा था की उड़न तस्तरी के संपर्क मै है कई देश | इस खबर मे यह कहा गया था की अंतरिक्ष से ये उड़न तस्तारियां से संपर्क बनाये हुए है और बड़े गोपनीय तरीकों से उनकी प्रोधोगिकी की प्रतिलोम अभियांत्रिकी का प्रयास कर रहे है | इस खबर को पढते ही मै तो सन्न रह गया |मुझे मेरे बचपन की वो घटना याद आने लगी जो मुझपर घटी थी बात सन १९७३ की है |जब हमारी उम्र लगभग १२ शाल होगी मै अपने माँ बाप का एकलौता संतान हूँ | जून का महीना था स्कूल मे छुट्टियाँ हो चुकी थी |मै अपने घर से करीब हाफ किलोमीटर दूर एक फिल्ड मे दोस्तों के साथ खेल रहा था अँधेरा घिरने को आ रहा था |मै भाग रहा था |मेरे पीछे पीछे कई दोस्त भाग रहे थे ,मुझे पकड़ने के
लिए अचानक मै अपने अंदर अजीव प्रकार की गर्मी मससूस किया और देखते ही देखते अपने दोस्तों के सामने से गायब हो गया |मुझे कुछ भी एहसास नहीं हुआ की मै गायब हो चूका हूँ ,मै तब जाना की सारे साथी ठिठक कर इधर उधर देखने लगे और मुझे ढूढने लगे |
अरे,पंकज कहाँ गया ?”हमारे सारे साथी बिचलित होकर हमें ढूंढ रहे थे जबकि मै सामने था |
मै तुम्हारे सामने हूँ राकेशमै बार बार बोल रहा था |लेकिन वो लोग मुझे देख नहीं पा रहे थे \
अभी तो यही था पंकज, वह कहाँ गायब हो गया राकेश ?”
अरे मोहित मै तुम्हारे सामने हूँ तुम्हारे हांथो को पकडे .,अरे मै मोहित को छू भी नहीं पा रहा हूँ |”तब मुझे अहसाश हुआ की मै सचमुच गायब हो चूका हूँ |हमारे साथी परेशान हो चुके थे |ये लोग बदहवाश सा इधर
उधर दौर रहे थे |हर कोई मुझे ढूंढ रहा था |लेकिन मै अदृष कैसे हो गया था मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा था ,हमारे साथी निराश हो चुके थे |
मोहित हमें पंकज के गायब होने की खबर अंकल आंटी को देनी होगी ,लेकिन कहेंगे क्या ?
कहेंगे क्या ,जो हुआ है वह सभी बात बता देंगे ठीक है चलो
मै तो अजीब उलझन मे फसा था | हमारी समझ मे तो कुछ नहीं आ रहा था |आखिर मै इनलोगों को दिख क्यों नहीं रहा हूँ |अब जब मै मोहित को पकड़ना चाहा तो क्यों नहीं पकड पाया | मै भारी मन से अपने घर चल दिया |
हमारे घर मे ये खबर एक तूफान से कम नहीं था हमारी मम्मी का तो रो रोकर बुरा हाल था | हमारे पापा के चेहरे पर एक अजीव चिंता थी लेकिन धैर्य बांधे हुए हमारी मम्मी को सांत्वना दे रहे थे |पड़ोसियों का तांता लगा हुआ था हमारे घर मे | कोई कुछ बताता तो कोई कुछ | हमारे सारे साथी एक कोने मे किसी अपराधी की भांती खड़े थे |सभी एक तरफ से पूछताछ की बौछार लगा चुके थे | मै लाचार था ,बेबस ,कभी मै अपनी माँ के पास जाता तो कभी अपने पापा के पास तो कभी अपने दोस्तों के पास |ये लोग जितना परेसान थे उससे ज्यादा मै परेसान था |तभी हमारे कानो मे पुलिस साइरन की आवाज आई |जो लगातार तीब्र होती जा रही थी |एक तेज चिंघार की आवाज आई| घर मे जितने ही पुरुष थे सभी स्तब्ध थे ,हर्बरा गए और बाहर की तरफ लपके .सभी महिलाये हमारी माँ के पास बैठी रही,उन्ही महिलाओ मे से किसी ने कहा पुलिस आई है हमारे पंकज का पता चल जायेगा !”
पुलिस एक साथ हमारे साथियों ने कहा | हमारे साथी एक अजीब दहसत से सहम गए थे क्योंकि हमलोगो ने पुलिस के बाड़े मे बहुत कुछ सुन रखा था .इसलिए डरे हुए थे ,तभी-
कहाँ है पंकज के साथी एक कड़कदार आवाज उस कमरे मे गूंज गयी | एक लंबा चौड़ा सक्स इंस्पेक्टर की बर्दी मे एक हाँथ से केप उतारते हुए तथा दूसरे हाथ मे बेंत लहराते हुए कक्ष मे प्रवेश किया उसके साथ दो हवलदार भी अंदर आये | फिर जितने भी पुरुष बाहर गए थे वे लोग किसी तरह दुबकते हुए साइड से अंदर प्रवेश कर रहे थे | सबकी नजर हमारे साथियों पर थी |
ओह तो ये है पंकज के साथी !” वह इंस्पेक्टर हमारे साथियों की तरफ बढते हुए पूछा – “बेटे तुम लोगो का क्या नाम है ?”
मोहित, राकेश, सनोज, मोहनसभी ने डरते हुए अपना नाम बता दिया |
बेटे डरो नहीं इंस्पेक्टर निचे बैठते हुए कहा – “मै तुम्हे कुछ नहीं कहूँगा ,मुझे बताओ आखिर हुआ क्या ?”
मै बेबस लाचार सा सहमे हुए अपने दोस्तों को देख रहा था | तभी अचानक महसूस हुआ की कोई हमारे पीछे खडा है ,मै तुरंत पीछे घुम गया सामने नजर पड़ते ही मै चीख उठा |एक परछाईं थी जो धीरे धीरे स्पस्ट होती जा रही थी ,जो दिखने मे अजीब थी |मेरे चीखने चिल्लाने से कोई फ़ायदा होने वाला नहीं था, मै शांत होकर स्थिर नेत्रों से उस बनते नए रूपों को देख रहा था | वह पूर्णतया स्पस्ट हो चूका था \ वह आक्रति शुर्ख लाल रंग की भांति चमक रही थी | उसका कद हमसे कुछ बड़ा था | मेरा कद चार फिट आठ इंच है |उसका शारीर गठीला लेकिन सपाट एकदम समतल जैसे स्टील का हो, उसका चेहरा भी सपाट था ,लेकिन सुर्ख चमकीला लाल | उसकी बनाबट हमलोगों से मिलती थी लेकिन सपाट सा , आँखों के जगह पर बटन नुमा प्लेट लगी हुई थी ,जो नीले रंग की थी ,वह ऑंखें बार बार चमक रही थी \ हमारी समझ से वह रोबोट की तरह लग रहा था | मै एकदम से उसे देखे जा रहा था |
कौन हो आप मैंने पूछा लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया |वह बस मुझे नीली आँखों से घूरता रहा फिर वह सक्रिय हुआ ,उसने हमारा दाहिना हाथ पकडकर चल दिया |
ये क्या कर रहे हो ,मुझे छोर दो मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?” मै चीखता रहा- “मम्मीपापा मुझे बचाओ ये रोबोट मुझे ले जा रहा है |” मै अपना हाथ छुड़ाने का भरसक प्रयास किया लेकिन नाकाम रहा | तभी वह चल पडा |
अरे रास्ता इघर है ,आगे दिवार है ,टकरा जायेगे हम !” लेकिन उस रोबोट पर कोई असर नहीं हुआ | “अरे तुम तो दिवार मे प्रवेश कर रहे हो मै नहीं जा पाउँगा ,!अरे इस दिवार मै भी प्रवेश कर गया !...ओह मै कही मर तो नहीं गया हूँ ?”
अरे यमदूत भाई आखिर बताओ तो सही मुझे कहाँ ले जा रहे हो ?” मेरे बोलने पर भी वह कुछ जवाब नहीं देता था |वह लगभग मुझे खिचता हुआ ले जा रहा था | लेकिन यह अगर यमदूत होता तो इस तरह नहीं होता ,नहीं..!मै मरा नहीं हूँ ! तो ...? कहीं मेरा अपहरण तो नहीं का लिया गया है दूसरे ग्रह वालो ने .! हे भगवन मुझे बचाओ अब हमें तुम ही बचा सकते हो ,अब हमारा कोई सुनने वाला नहीं है ,अरे यह तो मुझे उसी फिल्ड मे ले आया जहाँ मै गायब हुआ था | उस रोबोट ने मेरा हाथ छोर दिया और जहाँ हम लोग दौर रहे थे वहाँ उस फिल्ड मे कुछ सर्च करने लगा उसकी नीली आखें लगातार हरी भरी घासों मे कुछ चीज को ढूंढ रही थी ,उसे लगता की सायद यह है तो वह उठाने की कोशिश करता लेकिन नहीं |उस रोबोट ने हमारी तरफ एकबार भी नहीं देखा क्या खोज रहे हो रोबोट अंकल ?” लेकिन कोई जवाब नहीं |
अंधकार अपना साम्राज्य कायम कर चूका था |लेकिन अंधकार हमारी दिष्टि को अंधी बना नहीं सकती थी |मै स्पस्ट देख रहा था वह भी इस समय धुंद रहा था की जैसे लगता थक की यहाँ अंधकार नहीं हो तभी एक अजीब ध्वनि हमारे कानो मे पड़ी ,मै चौक गया और वह रोबोट भी |धुधना छोर कर वह मुझे देखने लगा उसकी नीली आखें हम पर टिकी हुई थी .फिर वही आवाज हमारे कानो से टकराई ,मै भी उस रोबोट को लगातार देखे जा रहा था ,उसने अपने चेहरे को ऊपर उठाया फिर दायें हाथों को एक दिशा मे उठाया फिर वही ध्वनि सुनाई पड़ी ,लेकिन इस बार उस रोबोट ने कहा |बड़ी बिचित्र आवाज थी | तभी हमरे कानो मे पुलिस साइरन की आवाज आई |”ओह पुलिस आ रही है हमारे गायब होने के स्थल निरिक्षण करने के लिए ,कुछ भी कर लो अब मै मिलने वाला नहीं हूँ ! इस धरती के लिए मै रह्श्य ही बन जाऊंगा |” वह रोबोट किसी से बात कर रहा था | फिर उसने अपनी हाथ निचे की, और हमारी तरफ कदम बढ़ा दिया | “ रोबोट भाई अब कहाँ ले जाओगे मुझे ,मुझे छोर दो मै बच्चा हूँ ,माँ बाप का एकलोता संतान हूँ लेकिन मेरे बोलने पर भी कोई असर नहीं हुआ | वह पास आ कर मेरे हाथो को पकड़ लिया | तभी मुझे लगा की निचे की जमीन निकल गयी है |मैंने निचे नजर दौडाई –‘अरे मै तो ऊपर उठ रहा हूँ ,अबे मै गिर जाऊंगा ,कहाँ ले जा रहे हो रोबोट अंकल !” लेकिन कोई असर नहीं | हम लोग काफी ऊपर आ चुके थे |निचे की हर चीजे छोटी नजर आ रही थी ,नही .अब मुझे अब विश्वास होने लगा है की मै सचमुच मै मर चूका हूँ ,सायद यमराज का न्यालय हाईटेक हो गया है और ये बास्तव मे यमदूत है ! लेकिन सोचने की बात है की अगर मै मरता तो हमारा सरीर तो होता लेकिन वो भी नहीं है |तभी वह समान उचाई पर रुक कर एक दिशा मे बढ़ चला अब हमलोग आबादी से दूर पहाड़ी एरिया मे थे जहाँ हरे भरे ऊँचे जंगल थे ,तभी हमारी नजर निचे एक चमकती गोल रौशनी पर पड़ी ,मै चौक गया, अरे ये क्या है? ओह कहीं यह उड़नतस्तरी तो नहीं है ? अचानक वह रुक गया उसके साथ मै भी हवा मे स्थिर हो गया | हमारी नजर उस चमकीली रौशनी पर स्थिर थी जो लगातार बढती जा रही थी ,मै अचंभित था मै उस गोलाकार लिए तस्तारिनुमा चपटी उड़न तस्तरी को देख रहा था ,मै उस रोबोट को देखते हुए कहा –“रोबोट अंकल ये क्या उड़न तस्तरी है ?” लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया |”अच्छा ये तो बताओ रोबोट अंकल की यह किस ग्रह का है ? “ मेरे बार बार कहने पर भी लोई जवाब नहीं दिया ,मै उस शुन्य मे स्थिर उस उड़न तस्तरी को देख रहा था जो लगातार चक्कर काट रहा था |अचानक हमें ऐसा लगा की हम निचे आ रहे है ,ऊपर से देखने मे छोटी उड़न तस्तरी अब धीरे धीरे बड़ी होती नजर आने लगी थी ,मैंने उस रोबोट की तरफ देखा उसकी नीली आखें लगातार उड़न तस्तरी पर जमी हुई थी \वास्तव् मे उड़न तस्तरी ,किसी ग्रह की शान थी कमाल की खूबसूरती थी जैसे लगता था की नक्कासी किया हुआ एक प्लेट दूसरे प्लेट पर पलटी हुई थी उड़न तस्तरी की हर चीजे चमक रही थी ,तभी उड़न तस्तरी का दरवाजा खुला और हम दोनों अंदर प्रवेश कर गए | मै अब कुछ बोल नहीं पा रहा था | मै बहुत कुछ पुछना चाह रहा था लेकिन बोल नहीं पा रहा था और पुछता किससे ये रोबोट महाशय कुछ बोलते ही नहीं थे ,अंदर का माहोल बड़ा अजीब था ,जहाँ हमलोगों ने प्रवेश किया था वह एक गलियारा था उसी गलियारे मे वह मेरा हाथ पकड़ कर ले जा रहा था ,उस गलियारे से निकलने के बाद एक कक्ष मे खडे थे |कक्ष की लम्बाई लगभग पन्द्रह फिट की होगी जो चारो तरफ से बेलनाकार था ,कक्ष मे अजीब चमकीली रोशनी थी ,तभी फिर वही ध्वनि हमारे कानो मे पड़ी लेकिन इसबार वो ध्वनि अजीब ध्वनि नहीं होकर एक संबोधन था जिसे मै भी समझ रहा था ,मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की ये भाषा तो इन ग्रह बासियो का है मै कैसे समझ रहा हूँ –“प्लीज अंकल आप जो भी हो मुझे छोर दे मै नादान बच्चा हूँ ?’ अरे मेरी बोली भी उसी ग्रह की भाषा की तरह हो गई ! तभी हमारे सामने की दिवार मे से एक तेज पुंज निकला जो धीरे धीरे आकृति मे बदलने लगी जिसे देख कर मेरी रूह कांप गई मै चीख उठा ,हमारे चीखने के कारण उस अंतरिक्ष यान मे एक सफ़ेद प्रकाश भर गया ,फिर थोरी देर मे वह सामान्य हो गया |
डरो नहीं पृथ्वी वासी एक पतली आवाज लेकिन तेज उस कक्ष मे गुज उठी –“ हम तुम्हे कोई नुकसान नहीं पहुचायेगे पहली वार हमसे कोई बाते किया | मै लगातार उस अजीब आकृति को देखे जा रहा था .वह देखने मे अजीब था पतला दुबला ,बड़ा सर ,नाके बड़ी ,आखों की जगह गोल सुर्ख लाल रंग की गोल थी जो अंदर की तरफ धसी हुई थी चेहरे पर मांस के जगह खुरदुरा मटमैला कलर लिए समूचा शरीर था टाँगे लंबी थी हाँथ भी लंबी थी लेकिन सभी पतली | लम्बाई सात फिट थी ,चेहरा सपाट ,मुंह गोलाकार लिए खुलती थी जब वह बोलता था |उसने कोई पोसाक नहीं पहना थी लेकिन मेरा हाल बहुत ही बुडा था ,तभी –“पृथ्वी वासी डरो नहीं तुम्हे कुछ नहीं होगा !”
लेकिन मै तो मर चूका हूँ मै सहमे हुए बोला ये यमदूत अंकल मुझे यहाँ ले आयें है
नहीं, तुम मरे नहीं हो, तुम जिन्दा हो लेकिन तुम मरोगे ..? फिर रुक कर बोला- अगर तुम्हे मै अपने साथ ले जा पाता तो तुम कभी नहीं मरते!”मै सोचने लगा की ये क्या बोल रहा है मुझे तो ये उड़न तस्तरी मे ले आया है और कहता है मै अपने साथ ले जा पाता ?मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था तभी उस कक्ष का तस्वीर बदलने लगा मै अपने आप को एक टुयुब मे पाया उस टुयुब मे एक गुलावी रंग का एक पदार्थ था जो धीरे धीरे हमारे शारीर पर चढ़ाता जा रहा था लेकिन मुझे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हो रही थी |वह अंतरिक्ष जीब अपने सामने लगे बिचित्र यन्त्र मे उलझा हुआ था |मै पूरी तरह उस गुलावी द्रब्य मे डूबता जा रहा था उस कक्ष मे बहुत से टुयुब लगे हुए थे उस टुयुब के अंदर भी कई प्रकार के जीब तैर रहे थे उस टुयुब का रंग कजली सा था |तभी हमारी नजर उस अंतरिक्ष जीव के सामने इमेज पर पड़ी
बिलकुल हमारी तरह की थी जो धीरे धीरे वह हमारी तरह बनती जा रही थी ,वह जीव हमारे उस इमेज के हर पार्ट को बिखंडित करता जा रहा था \हमारे शरीर मे जितने भी अंग थे उसे वह अलग कर चूका था वह आकृति पूरा का पूरा हमारी तरह हो चूका था मै आश्यर्चाकित था मै अपने रूप को देखकर कभी मै अपने रूप को देखता तो कभी उस परग्रही को अचानक मै चौंक गया कहीं इस हमशक्ल को मेरे घर पड़ नहीं भेज देगा ?
सही सोच रहे हो इस आवाज़ से मै चौंक गया –“क्या ?”
तुम सही सोच रहे थे यही प्लान था ..” मै उसे लगातार देखता जा रहा था –“प्लान था से क्या मतलब ?”
हाँ प्लान तो यही था, मै पृथ्वी के हर मानव के संरचना को समझ गया हूँ लेकिन बातावरण को समझ नहीं पाया हूँ पृथ्वी के प्रकृति को समझ नहीं पाया हूँ ,हम तुम्हारे बातावरण मे जीवित नहीं रह सकते है ,वह बोलते बोलते रुका फिर बोलातुम अपने हमशक्ल को देख रहे हो ये तुम्हारा तथा मेरा मिला जुला रूप है मै तुम्हारे रूप मे पृथ्वी पर जीता और जब मेरा प्रयोग सफल होता तब पृथ्वी के वासी को समाप्त कर देता लेकिन इतना बोल कर चुप हो गया
ओह मै चुप था फिर मै बोला –“लेकिन क्या ?
लेकिन अफ़सोस, मै तुम्हारे प्रकृति को जब तक समझ नहीं पाया लेकिन जब तकतुम्हारी प्रकृति को समझ नहीं लूँगा चैन से नहीं बैठूँगा और इसे समझने मे मुझे बहुत समय लगेंगे
क्या तुम्हारे ग्रह पर इस तरह की हरियाली नहीं है ?”
नहीं हमारे ग्रह पर इस प्रकार की हरियाली नहीं है वहाँ पर अब जीवन बचाना मुश्किल है उसने बोला और शुन्य को निहारने लगा ?
मै बिचित्र स्थिति मे फंसा था वो लगातार शुन्य मे देख रहा था उसके चेहरे पर तरह तरह के भाव आ रहे थे मैंने टोका –“ मेरा क्या होगा ?”
अफ़सोस मै तुम्हे ले नहीं जा सकता लेकिन मै फिर वापस आऊंगा बहुत ही जल्द आऊंगा तब तुम पृथ्वीवासी को कोई मोका नहीं दूँगा समुचि पृथ्वी पर हमारे ग्रह के वासी होंगें इतना बोल कर चुप हो गया |तभी मुझे एक झटका लगा मेरे सामने की चीजे धुंधली पड़ने लगी मुझे लगने लगा मै बिलकुल हवा मे तैर रहा हूँ ,फिर मेरी चेतना चली गयी उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं मै कैसे उसी मैदान मे आ गया | अँधेरा अपना पूरा साम्राज्य कायम कर चूका था |समय क्या हो रहा था मुझे पता नही था ,मै पूरी तरह आज़ाद था मुझे विश्वास नहीं हो रहा था, लगता था की मुझे फिर से नया जीवन मिल गया था ,मै अपनी धरती पर लेटा हुआ था | मै कितना खुस किस्मत था, मै इस प्यारी धरती पर जन्म लिया,हमारी धरती पर कितनी हरियाली है आज इसी हरियाली के कारण मै परग्रही का गुलाम होने से बच गया |


--दीपक कुमार मनीष,मधेपुरा
(संपर्क:९९३१३५९१७५)
परग्रही का गुलाम-विज्ञान कथा परग्रही का गुलाम-विज्ञान कथा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 07, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. धन्यवाद मधेपुरा टाइम्स |

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