तुम्हारी छाया में
यहाँ से वहां तक
छाये हैं सपाट चेहरे
मटमैली आँखें, मुर्दा जिस्म.
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जब भी हवा चलती है
जब भी हवा चलती है
वह धरती को नहीं छूती
कुछ इमारतों के मुंडेरों को छूती है
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हवा का बहना
हवा का बहना
भीतर
कोई कंपन नहीं पैदा करता.
--आर्या दास, अधिवक्ता, मधेपुरा (बिहार)
(संपर्क: 9431413541)
उदास होते हुए
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 17, 2011
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