उदास होते हुए

तुम्हारी छाया में
यहाँ से वहां तक
छाये हैं सपाट चेहरे
मटमैली आँखें, मुर्दा जिस्म.
    .............
    जब भी हवा चलती है
    वह धरती को नहीं छूती
    कुछ इमारतों के मुंडेरों को छूती है
        और फिर महाशून्य में 
    विलीन हो जाती है.
 .............
हवा का बहना
  भीतर
कोई कंपन नहीं पैदा करता.

--आर्या दास, अधिवक्ता, मधेपुरा (बिहार)
(संपर्क: 9431413541)
उदास होते हुए उदास होते हुए Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 17, 2011 Rating: 5

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