चुप रहना ज्यादा सुरक्षित है,
इसलिए जिन्दा लोग बोलते नहीं
इन दिनों.
सच बोलने से इन दिनों
जबान नहीं कटती
गर्दन कट जाती है.
इन दिनों आज का सच
लाशें बोलती हैं
लपटें बोलती हैं
या जन्म लेते ही चटाया जाने वाला
दधीचि की हड्डियां न जाने कब
गला दिया इस नमक ने
इसलिए कोई धनुष नही है आज
जो तना हो
इस जिबह करती खामोशी के खिलाफ.
--आर्या दास, अधिवक्ता, मधेपुरा (बिहार)
(संपर्क: 9431413541)
खामोशी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 03, 2011
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वास्तव में ... इस कविता में बहुत जलते विषय पर दस्तक दी गई है ...... सच बोलने की हिम्मत मत करना ... अन्यथा ... आप इसे बेहतर जानते हैं
ReplyDeleteएक अच्छी कविता जिसमे आर्या जी कम लिख कर बहुत कुछ कह दी /
ReplyDeleteSach kaha hai,sach klahne se gardan kat jati hai.
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