राकेश सिंह/०३ जुलाई २०११
कोई भी व्यक्ति जीवन में अनेक रिश्तों में बंधा होता है.हमारा सुखद जीवन इन्ही रिश्तों के संतुलन पर ही निर्भर करता है.रिश्तों में संतुलन रखना बहुत आसान नही होता है.खास कर लड़कियों के लिए तो ये एक काफी मुश्किल काम है, क्योंकि एक तो उन्हें बहुत सारे रिश्ते सोच समझकर निभाने होते हैं फिर रिश्तों को लेकर वे काफी भावुक भी होती हैं.किसी भी रिश्तों के बनने पर जहाँ लड़कियां आमतौर पर खुश होती हैं वहीं रिश्तों के टूटने का दर्द भी इनके लिए दुखदायी होता है.
लड़कियों के लिए शादी से पहले और शादी के बाद के रिश्तों में एक बड़ा फर्क होता है.शादी से पहले जहाँ अपने पिता के घर में उसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है वहीं शादी के बाद पति के घर की वो धुरी बन जाती है.शादी से पहले जहां एक लड़की बेटी, बहन आदि होती है वहीँ शादी के बाद वो पत्नी, भाभी, चाची, मामी आदि बन जाती है और यहीं से शुरू होता है संतुलन का अभ्यास.कभी-कभी तो बहुत ही सावधानी के साथ भी स्थापित करने के बाद भी मुश्किलें आ जाती है.दरअसल कोई सम्बन्ध सिर्फ इस बात पर निर्भर नही करता है कि सिर्फ हम अच्छा व्यवहार करते हैं, बल्कि यदि सामने वाले की नीयत और व्यवहार अच्छा नही रहता है तो भी हमारे लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती है.
शादी के बाद ससुराल में कदम रखते ही अतीत की यादों के साथ वह भविष्य के सपने बुनना प्रारम्भ कर देती है.यहाँ अजनबी रिश्तों के बीच यदि उसे प्यार और अपनापन मिलता है तो वो आसानी से ससुराल में सामंजस्य बिठा लेती है.यहाँ से धीरे-धीरे वो मायके की बहुत सी यादों को पीछे छोड़ने लगती है.पर उसे एक दर्द का अहसास तब होता है जब वो फिर मायके जाती है.यहाँ अब उसे बहुत कुछ बदला-बदला सा लगता है.अब तक उसके कमरे पर भाई-बहन अपना अधिकार जमा चुके होते हैं.चीजें जिसे वो जान से ज्यादा चाहती थी, अब कहीं कोने में बिखड़े पड़े होते हैं,मानो किसी की नजर में उसकी कोई अहमियत ही नहीं है.अब उसके आगे बढ़ने या कैरियर प्रति माँ-बाप पहले की तरह चिंतित नही रहते हैं, क्योंकि अब ये जिम्मेवारी ससुरालवालों की हो चुकी होती है.ऐसे में एक लड़की अगर सामंजस्य न बिठाए तो यहाँ उसे दर्द का अनुभव होता है.


कुलमिलाकर रिश्तों में संतुलन सुखद जीवन के लिए अत्यंत ही आवश्यक है.संतुलन बनाकर रहना जिस लड़की के स्वभाव में ही निहित है वे जीवन भर ससुराल और मायका दोनों की ही दुलारी बनी रहती है.
रिश्तों में न हो संतुलन तो जिंदगी हो सकती है मुश्किल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 03, 2011
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