मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ
अब उसके क़तिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ
हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ
गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ
है आवारा ख़यालों के परिंदे
मैं इनके पर कतरना चाहती हूँ
कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ
--श्रद्धा जैन,सिंगापुर
मैं ख़ुशबू हूँ , बिखरना चाहती हूँ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 26, 2011
Rating:
bahut khub shradha ji.Aap ka lekhan ak jadoo hai ,wah wah
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