राकेश सिंह/०१ जुलाई २०१०
बीमारी और मौत किसी को नहीं छोड़ती चाहे वो अमीर हो या गरीब.प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा भरोसा दिलाया जाता है- ‘एक कॉल कीजिये और एम्बुलेंस आपके दरवाजे पर हाजिर’.हकीकत जो हो पर एक हकीकत तो आप भी देख सकते हैं कि बहुत सारे एम्बुलेंस खुले आसमान के नीचे यूं ही पड़े हुए हैं जिन्हें देखने वाला शायद ही कोई है.
एक हकीकत और भी है कि अमीर तो जरूरत पड़ने पर प्राईवेट वाहन या एम्बुलेंस का उपयोग कर
लेते हैं पर गरीब क्या करें?खाने को लाले पड़े हैं तो कॉल कहाँ से करें और स्वास्थ्य विभाग का फोन नं०
भी कैसे याद रखें?विभाग के कार्यालय तक पहुच भी गए तो उन्हें एम्बुलेंस मिल ही जायेगा और यदि मिल ही गया तो क्या उतने पैसे वो दे सकेंगे? पर चिंता छोडिये गरीबों की,आप उनकी चिंता करके भी पूरी तरह समाधान नहीं कर सकेंगे.
लेते हैं पर गरीब क्या करें?खाने को लाले पड़े हैं तो कॉल कहाँ से करें और स्वास्थ्य विभाग का फोन नं०
भी कैसे याद रखें?विभाग के कार्यालय तक पहुच भी गए तो उन्हें एम्बुलेंस मिल ही जायेगा और यदि मिल ही गया तो क्या उतने पैसे वो दे सकेंगे? पर चिंता छोडिये गरीबों की,आप उनकी चिंता करके भी पूरी तरह समाधान नहीं कर सकेंगे.

जहाँ देश की अधिकाँश जनता गरीबी की मार झेल रही है वहाँ आपका मोटरगाड़ी वाला एम्बुलेंस पूरी तरह कारगर भी नहीं हो सकता.अगर इसे कारगर बनाना है तो बढाइये एम्बुलेंस की संख्या,घटाइये इसका किराया और बनाइये इसे इतनी सुविधाजनक, जितना कि गरीबों का एम्बुलेंस-ठेला.
गरीबों का एम्बुलेंस – ठेला
Reviewed by Rakesh Singh
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July 01, 2010
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hamre desh me koy be garib nahe seva ko misuse karaty hi garib mere pass ambulance seva hi amir se garib sab free me lejana chaty hi ?
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