शिक्षा,संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में अनूठी मिसाल: डा० शान्ति यादव

पुरुष प्रधान समाज में किसी महिला का अपनी क्षमता व योग्यता के बलबूते उभारना निश्चित रूप से काफी संघर्षपूर्ण होता है.और यदि समाज भी ऐसा जिसमे करीब सारे पुरुष कुंठित ही नजर आते हों.और उभरने का क्षेत्र भी ऐसा जिस पर अब तक सिर्फ पुरुषों का ही वर्चस्व बना हुआ था.शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान सबसे ऊपर बनाना असंभव तो नहीं,पर काफी मुश्किल तो अवश्य है.
इस महीने हम आपके सामने 'पर्सनैलिटी ऑफ द मंथ'  के रूप में ला रहे हैं एक ऐसी महिला शख्शियत को जिनका सफर सफर साईकिल से शुरू होकर कार,जिसे वह खुद ड्राइव करती हैं,
तक आता है.उपलब्धियां और सम्मान इतने कि बहुतों ने कल्पना भी न की होंगी.मधेपुरा जिला में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो शिक्षा जगत से जुड़ा हो और डा० शान्ति यादव को न जानता हो.

जी हाँ,मधेपुरा टाइम्स पर्सनैलिटी ऑफ द मंथ (जून २०१०) हैं- डा० शान्ति यादव जो वर्तमान में दि० ०१-०६-२००४ से ही जिला मुख्यालय स्थित शिवनंदन प्र० मंडल उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्या के पद पर आसीन हैं.इन्हें बिहार में पहली जिला माध्यमिक शिक्षक  संघ  की अध्यक्ष होने का भी गौरव प्राप्त है.
अनुशासनप्रिय डॉ० शान्ति यादव को विद्यालय के उत्कृष्ट परीक्षाफल के लिए वर्ष २००५ से ही बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा लगातार २००९ तक सम्मानित किया जाता रहा है.
मधेपुरा जिला के ही मुरलीगंज थानान्तर्गत रजनी गोठ में दिनांक ०१-०५-१९५५ को ही जन्मी डा० शान्ति यादव आठ भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं.पिता स्व० ह्रदय ना० मंडल जो मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत हुए थे, ने शायद बचपन में ही शान्ति में एक अद्भुत क्षमता विकसित होते हुए देखा था तब ही तो उन्होंने शान्ति को  चार साल की ही उम्र से माँ से अलग अपने साथ रखकर शिक्षा देते रहे और कर्मक्षेत्र में संघर्ष करने को भी प्रेरित किया.माँ ने भी नैतिक समर्थन दिया और भाई बहनों ने भी इन्हें गृहणी बनने  नहीं दिया तथा इनकी पढाई में पूर्ण सहयोग दिया.
बालिका विद्यापीठ लखीसराय से स्कूली शिक्षा प्राप्त कर डा० शान्ति ने प्राईवेट से मिथिला विश्व विद्यालय दरभंगा से एम०ए० तक की पढाई की. बी०ए० में इनका विषय हिन्दी ऑनर्स था और मास्टर डिग्री इन्होने हिन्दी तथा अंगरेजी दोनों विषयों से की. पी०एच०डी० में इनका टॉपिक था 'नागार्जुन के उपन्यासों में अभिव्यक्त दलित चेतना'.
  डा० शान्ति यादव के संघर्ष का दूसरा दौर शुरू होता है १ अप्रैल १९७६ से जब इन्होने जगन्नाथ झंवर कन्या उच्च विद्यालय मधेपुरा में सहायक शिक्षिका, हिन्दी के पद योगदान किया और फिर विद्यालय सेवा बोर्ड द्वारा सीधी भर्ती के तहत १२ अक्टूबर १९८८ को प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय मुरलीगंज में प्रधानाधापिका के राजपत्रित पद पर नियुक्त हुईं.
                 इनकी उपलब्धियों की सूची काफी लम्बी है.
जैसे वर्ष २००४ में 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना द्वारा १९९९-२००० का 'साहित्य सेवा' सम्मान,२००३ में भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के द्वारा 'वीरांगना सावित्री बाई फूले फेलोशिप सम्मान ',जिला प्रशासन मधेपुरा द्वारा 'साहित्यकार सम्मान',२००० ई० में कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'सारस्वत सम्मान'साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए न्यायमूर्ति आर०पी०मंडल जयन्ती समारोह २००९ के अवसर पर सम्मान पत्र,कामेश्वर पोद्दार स्मृति सम्मान साहित्य के क्षेत्र में,विद्यालय में शैक्षिक कार्यकलाप तथा अच्छे परीक्षाफल देने हेतु बी०एन०मंडल विश्व विद्यालय द्वारा सम्मान तथा इनके अलावे और कई सम्मान इनके खाते मे दर्ज हैं.
            डा० शान्ति यादव की साहित्यिक उपलब्धियां भी कम नहीं है.१९७२ से ही राष्ट्रीय स्तर  की स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में इनकी गजल,कवितायेँ,कहानी आलेख आदि प्रकाशित होते रहे हैं.इनकी दो गजल संग्रह 'चुप रहेंगे कब तलक' और 'उदास शहर में' प्रकाशित हैं.संपादन के क्षेत्र में भी इन्होने खासी मिहनत की है.भूपेंद्र ना० मंडल स्मृतिग्रंथ,बी०पी०मंडल स्मारिका २००७ व २००९,जिला स्थापना दिवस पर प्रकाशित स्मारिका में भी इन्होने संपादन का कार्य किया है.इनकी उपलब्धियों की फ़ेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती.
सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भी इनकी खासी उपलब्धि है.बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्  की साहित्यकार कलाकार कल्याण की उच्च  स्तरीय समिति की ये सदस्य भी रही हैं जिनके अध्यक्ष बिहार के राज्यपाल होते हैं.लोक कला के क्षेत्र में 'बटोही' नामक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करने वाली संस्था की सचिव होने के साथ ये इप्टा की एक संरक्षक,रेडक्रॉस सोसाइटी,मधेपुरा की सदस्य,राष्ट्रीय जातिविहीन समाज निर्माण समिति तथा जुडो-कराटे से सम्बंधित 'बिहार जीत कुनैहो संघ' की ये उपाध्यक्ष भी हैं.साथ ही साथ समय-समय पर दूरदर्शन तथा रेडियो से वार्ता हेतु भी ये आमंत्रित होती रही हैं.
                   मधेपुरा टाइम्स के प्रबन्ध संपादक राकेश सिंह से खास बातचीत में डा० शान्ति यादव ने अपने जीवन के संघर्ष व सहयोग पर विस्तार से चर्चा की.अपने संघर्ष के बारे में उन्होंने बताया कि उनका पहला संघर्ष पुरुष प्रधान समाज में 'महिला होने का' था.महिलाओं को अपनी क्षमता व योग्यता साबित करने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ता है.यदि आपके अंदर क्षमता हो भी तो दिखाना मुश्किल होता है चूंकि साधन विपन्नता भी होती है और उचित मंच भी नहीं मिलता.लड़कियों पर पाबंदी होती है और ऐसे पाबंदी भरे समाज में अपने को 'प्रोजेक्ट' करना काफी मुश्किल होता है.समाज में महिलाओं द्वारा नई चीजों को दिखाना समाज के लोगों को गंवारा नहीं होता.
बचपन को याद करते हुए वे कहती है कि उन्होंने जब सायकिल चलाना शुरू किया था तब सामाजिक ताने बाने भी सहने पड़े थे.तब के सायकिल से आज के कार तक का ये सफर काफी मुश्किल रहा.पहली बार सफलतापूर्वक कार चलाने पर लगा कि दुनियां जीत ली.इसलिए नहीं कि ये सिर्फ कार चलाना था बल्कि एक बंदिश थी जिसे मैंने खत्म किया.ये आत्मनिर्भर बनने जैसा था वर्ना एक लड़की को आज भी इस समाज में कहीं आने जाने के लिए किसी के सहारे की आवश्यकता होती है.
     वे आगे बताती हैं कि इसी तरह विद्यालयों के प्रशासन को सुधारने में भी काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा.'महिला होना' ही अपने आप में बहुत बड़ा संघर्ष था.किसी महिला के प्राचार्या बनने  पर सबंधित लोगों ने चाहा कि ये 'रबर स्टाम्प ' के रूप में काम करें.पर ऐसा नहीं करने पर उन्हें गंवारा नहीं हुआ.विरोधियों की संख्या ज्यादा होने का सबसे बड़ा कारण था-समयनिष्ठ तथा ईमानदार होना.पर २२ जून १९७२ को शादी के बाद उस दिन से जीवन के हर क्षेत्र में पति डा० मुरलीधर यादव के सहयोग ने संघर्ष को आसान बना दिया. इसके अलावे मित्र डा० मंजूश्री वात्स्यायन,दामाद डा० ओमप्रकाश भारती,उपसचिव,केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी,नई दिल्ली,भतीजे ई० नीरज कुमार के सहयोग ने मुझे साहित्यिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने में काफी मदद पहुंचाई .बेटी अनुजा सुप्रिया तथा पुत्र डा० नीरज निशांत ने भी जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ने में सहयोग किया.बच्चों ने कभी मुझे उस रूप में नहीं देखना चाहा जैसी आम माएं होती है,बल्कि इसी रूप में स्वीकार किया.
        डा० शान्ति यादव के संघर्ष की गाथा आज यहीं खत्म नहीं हो रही है.उनका मानना है कि सफलता एक यात्रा है न कि मंजिल.सन २०१५ में जब वे नौकरी से सेवानिवृत होंगी तो भी उनका संघर्ष और सफलताएं उनके साथ होंगी.डा० शान्ति यादव की सफलता का मूलमंत्र है -कर्म करते रहना.जीवन के संघर्ष पथ पर वे लोगों से नहीं डरती हैं बल्कि सर सिर्फ ऊपर वाले के सामने झुकने की बात कहती हुई हमारी बातचीत यहीं समाप्त होती है.
     मधेपुरा टाइम्स उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है तथा उनकी भावना लोगों के सामने इन पंक्तियों में रखती है ताकि लोग उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें कि-
              रख तू दो चार कदम ही लेकिन
              जरा तबियत से कि 
             मंजिल खुद-ब-खुद तेरे पास 
             चल कर आयेगी.
             अरे,हालत का रोना रोने वाले,
             मत भूल कि तेरी 
             तदबीर ही तेरा तकदीर बदल पायेगी.
शिक्षा,संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में अनूठी मिसाल: डा० शान्ति यादव शिक्षा,संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में अनूठी मिसाल: डा० शान्ति यादव Reviewed by Rakesh Singh on June 30, 2010 Rating: 5

2 comments:

  1. santi madam ham aapke fane hai..........sath aapke student bhi 2005 me hamne s n p m se matric kiya hai.....bhagwan aapko or tarki de.......sath hi aapse pranam kahte hai..hame aashirwad dijiye ki hum bhi aapki tarah kuch aisa kare jis se madhepura ka naam ho ....

    ReplyDelete
  2. Great to hear about you by Madhepura Times. I use to remember those with you in General High School. You weren't just a Principle of that School but also the Inspiration for all the student, even today I feel proud when point myself as your lovable pupil.

    Now I am a Social Entrepreneur and now it all happen because of You. You guided me, You mentored me, You turned me.


    I pray for your Wellness.

    Thank You. Madhepura Times.

    ReplyDelete

Powered by Blogger.