रूद्र नारायण यादव/२८ जून २०१०

बताते हैं कि इस मद में करीब चार करोड़ राशि खर्च किये गए जो सरकारी अधिकारियों और ठेकेदारों का ग्रास बन गयी और नतीजा सिफर ही रहा.कटाव निरोधक कार्य और पीड़ितों के नाम पर सरकार द्वारा भेजी गयी राशि निरर्थक साबित हुआ है.गांव के लोग जानवर से भी बदतर स्थिति जीने को विवश है.जाएँ तो जाएँ कहाँ वाली स्थिति चरितार्थ हो रही है.कई परिवार आज भी खुले आसमान के नीचे लाचार होकर रह रहे हैं.
गांव वाले बताते हैं कि अधिकारीगण ने कभी भी गांव के लोगों की राय बचाव कार्य में नहीं ली नहीं तो गाँव बच सकता था.बात यहाँ भी सत्य प्रतीत होता है कि बाढ़ राहत के नाम पर अधिकारियों और कर्मचारियों ने सच में भारी लूट मचाया.शायद अब भी सरकार के कान पर जूं रेंगे और बचे लोगों की जिंदगी बचाई जा सके.
आलमनगर का मुरौत गांव कोशी में विलीन:चार करोड़ की बंदरबाँट
Reviewed by Rakesh Singh
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June 28, 2010
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