सुकेश राणा/२८ जून २०१०
ये निश्चित रूप से भूमंडलीकरण का ही असर है कि मधेपुरा जैसे कस्बाई इलाकों में भी तलाक की घटना काफी तेजी से बढ़ी है.मधेपुरा में २००६ में परिवार न्यायालय के गठित होने के बाद से भरण-पोषण तथा तलाक के ढेर मामले दायर होने लगे.बढते मामले को देखते हुए न्यायालय ने भी इन वादों के निष्पादन की प्रक्रिया तेज कर दी.प्राप्त जानकारी के अनुसार २००८ में परिवार न्यायालय ने भरण-पोषण तथा तलाक के ४८ मामलों का निष्पादन किया.२००९ में भी न्यायालय ने २५ मामले निष्पादित किये और फिर भी तीन दर्जन मामले लंबित ही रह गए.दूसरी ओर २०१० के जनवरी से अब तक एक भी मामले का निष्पादन नहीं हो सका है.
वर्तमान में मधेपुरा के न्यायालय में तलाक के लगभग २५ मामले चल रहे हैं.स्थानीय विधि विशेषज्ञों का मानना है कि हाल के वर्षों में तलाक के मामले काफी बढे हैं.अधिवक्ता जवाहर झा कानून में तलाक के आधारों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं दो-तीन वर्षों से लड़कों द्वारा चरित्रहीनता को आधार बना कर तलाक की अर्जी दायर हो रहे हैं जो काफी खतरनाक और चिंतनीय है.
अधिवक्ता ललन सिंह का कहना है कि आज कल शादी के कुछ ही दिन बाद से आपसी तकरार बढ़ जाती है और यह तकरार व अहम पति पत्नी को तलाक के दरवाजे तक लेकर जाती है.अधिवक्ता मनोज कुमार अम्बष्ट कहते है कि पति पत्नी के बीच तलाक की नौबत आने का मुख्य कारण अहम् का टकराव है.उनका यह भी मानना है कि वर्तमान कानून से भले ही महिलाओं को बल मिला है परन्तु निराशा भी महिलाओं के पक्ष में लगती है.इस अर्धविकसित समाज में महिलाओं की स्थिति न घर की और न घाट की होकर रह जाती है.खास कर यदि बच्चे हो जाने के बाद ये स्थिति पैदा होती है तो बच्चे की जिंदगी अधर में लटक कर रह जाती है.
अधिकाँश लोगों का मानना है कि तलाक के मामले में कानून को और सख्त होना चाहिए ताकि महिलाऐं फिर एक नई जिंदगी कि शुरुआत कर सके.
ध्वस्त हो रहे विवाह संस्था: बढ़ रहे तलाक
Reviewed by Rakesh Singh
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June 28, 2010
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