कुसहा त्रासदी : छह साल, छह सवाल

|बबली गोविन्द की रिपोर्ट|18 अगस्त 2014|
कुसहा त्रासदी को छह वर्ष हो गए। 18 अगस्त, 2008 को कुसहा टूटा था। त्रासदी के बाद से जिस बुखार से कोसी अंचल के लोग तप रहे हैं, उसको मापना आज भी थर्मामीटर के वश की बात नहीं है। त्रासदी के जख्म आज भी मौजूद हैं। आज भी बड़ी संख्या में लोग क्षतिपूर्ति की राशि से वंचित हैं। त्रासदी के बाद जब कभी भी नीतीश कुमार का कोसी में पांव पड़े उन्होंने पुनर्निर्माण की बात जरूर की। साथ में पहले से बेहतर कोसी बनाने का वादा भी। लेकिन आज की तारीख में भी सभी गांवों में आश्रय स्थल का निर्माण नहीं हो सका है। बीरबल की खिचड़ी खाते और आश्वासनों की घुट्टी पीते अब लोगबाग आजिज आ चुके हैं।

सवाल-दर-सवाल
पहला सवाल; त्रासदी के दोषियों पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई? दूसरा- बांध को बचाने के लिए विभाग के पास क्यों था महज सात लाख? तीसरा- जब तटबंध की उम्र 25 साल ही निर्धारित थी तो फिर उस एक्सपायर तटबंध को अगले 30 साल तक क्यों झेला गया? चौथा- जब 5 अगस्त, 08 को ही कुसहा के समीप बने स्पर पर कटाव लगा था तो फिर कटाव स्थल पर बोल्डर व बी. ए. वायर से बने क्रेटस का पर्याप्त भंडार क्यों नहीं था? पांचवां- तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार की घोषणा के बाद भी सभी गांवों में अबतक क्यों नहीं हो सका आश्रय स्थल का निर्माण? अंतिम सवाल; कोसी महाप्रलय के शिकार लोगों के पुनर्वास समस्या का क्यों नहीं हो पाया समाधान?

विभाग के पास क्यों था महज सात लाख?
ताज्जुब नहीं कि बांध को बचाने के लिए विभाग के पास महज सात लाख की निधि थी। बता दें कि जब स्परों पर कटाव लगना शुरू हुआ था तो उस समय विभाग के पास दो लाख की राशि थी। पटना सूचना देने पर अभियंता प्रमुख द्वारा पांच लाख की और राशि दी गई। जो भी हुआ हो लेकिन बांधको बचाया नहीं जा सका। 5 अगस्त, 08 को ही कुसहा के समीप बने स्पर पर कटाव लगा था जो कि 18 अगस्त को टूट गया। कायदे से बोल्डर व बी. ए. वायर से बने क्रेटस का पर्याप्त भंडार ऐसे स्थलों पर रहना चाहिए था। जो नहीं था। महज पौने दो लाख डिस्चार्ज में कुसहा के पास कट जाना आज भी कई प्रश्र खड़े कर रहे हैं। जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक कहते हैं कि सात लाख क्यूसेक पर नहीं टूटा, पौने दो लाख पर कैसे?

मीटिंग-मीटिंग खेलते रहे अधिकारी
अधिकारी मीटिंग-मीटिंग खेलते रहे और कुसहा त्रासदी के शिकार प्रभावितों की स्थिति रह गए गम के निशां, हाले दिल किससे कहें वाली। जिले में बड़ी संख्या में आज भी ऐसे लोग हैं जो पुनर्वास के लिए टकटकी लगाए हुए हैं। त्रासदी के छह वर्ष बाद भी पुनर्वास की उपलब्धि 25 प्रतिशत भी नहीं है। बता दें कि मई 2010 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोसी पुनर्वास व पुनर्निर्माण योजना का उद्घाटन किया था। इस बाबत डीएम एलपी चौहान का कहना है कि 2014 में लक्ष्य पूरा कर लेने का निर्देश दिया गया है। यहां बता दें कि कोसी नदी जब कुसहा में मुक्त हुई तो बर्बादी की वो दास्तान लिख डाली कि इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करना पड़ा था।

समृद्ध इतिहास पर भ्रष्टाचार की छींटे:
कोसी अंचल की गिनती पहले ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों की सम्पन्नता के लिए होती थी, अब भ्रष्टाचार के कारण कोसी अंचल की नयी पहचान बनती जा रही है। त्रासदी के बाद जहां कई लोगों ने सहायता राशि का लाभ लिया वहीं स्वर्गवासी हो चुके लोगों को भी राहत मिलने की सूचना है। ताज्जुब नहीं कि सुपौल जिले के चंपानगर पंचायत से नेपाली नागरिक दयानंद यादव के नाम पर राहत उठायी गयी।

कहते हैं नेताजी
पूर्व विधायक सह वरिष्ठ राजद नेता यदुवंश कुमार यादव, भाजपा के सुपौल जिलाध्यक्ष नागेन्द्र नारायण ठाकुर, युवक कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश चौधरी, जिप के पूर्व उपाध्यक्ष प्रणय कुमार सिंह, आम आदमी पार्टी के गणेश प्रसाद ठाकुर, भाकपा माले लिबरेशन के कामरेड नागेन्द्र नाथ झा, सीपीआई के कामरेड सुरेश्वर प्रसाद सिंह, सीपीएम के कामरेड शत्रुघ्र प्रसाद यादव, भाजपा नेता सुरेन्द्र नारायण पाठक, कांग्रेस पार्टी के पंकज मिश्र सहित अन्य ने पुनर्वास के काम में तेजी लाने की मांग की है। नेताओं का कहना है कि 5 अगस्त, 08 को ही कुसहा के समीप बने स्पर पर कटाव लगा था जो कि 18 अगस्त को टूट गया। कायदे से बोल्डर व बी. ए. वायर से बने क्रेटस का पर्याप्त भंडार ऐसे स्थलों पर रहना चाहिए था। जो नहीं था। महज पौने दो लाख डिस्चार्ज में कुसहा के पास कट जाना आज भी कई प्रश्र खड़े कर रहे हैं। जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक कहते हैं कि सात लाख क्यूसेक पर नहीं टूटा, पौने दो लाख पर कैसे?
कुसहा त्रासदी : छह साल, छह सवाल कुसहा त्रासदी : छह साल, छह सवाल Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 18, 2014 Rating: 5

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