मुद्दे पर ना बात पर, बटन दबेगा जात पर !: सुपौल लोकसभा पर एक रिपोर्ट

|सुपौल से पंकज भारतीय|22 अप्रैल 2014|
कोसी की विनाशलीला और रोजगार के लिए पलायन का दशकों से दर्द लिए सुपौल लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने लोकतंत्र के महापर्व 2014 का मुस्कुरा कर स्वागत किया. चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दे और इरादे की खूब चर्चा हुई और हर दल और प्रत्याशी ने अपनी कमीज दूसरे से सफ़ेद बतलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आम मतदाता खामोश रहे क्योंकि उन्हें बहरूपिये, कोरे वायदे और जन्नत की हकीकत का पता है. ज्यों-ज्यों मतदान की तारीख नजदीक आते गए, वाडे और मुद्दे गौण होते गए. चुनाव से ठीक पहले स्पष्ट हो गया कि पूर्व की भांति चुनाव परिणाम जातीय समीकरण और मतों का ध्रुवीकरण तय करेगा.
      सुपौल लोकसभा नए परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में अस्तित्व में आया. इससे पूर्व यह सहरसा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था. इसमें कुल छ: विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं और कुल 14.98 लाख मतदाता हैं. सुपौल जिला का सुपौल, पिपरा, त्रिवेणीगंज, छातापुर और निर्मली तथा मधेपुरा जिला का सिंहेश्वर विधान सभा क्षेत्र इस लोकसभा का हिस्सा हैं. सभी छ: विधानसभा सीट पर जनता दल यू का कब्ज़ा है. वर्ष 2009 के चुनाव में जदयू के विश्वमोहन कुमार ने भाजपा-जदयू के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज किया था और निकटतम प्रतिद्वंदी कॉंग्रेस की रंजीत रंजन रही थी. राजद-लोजपा के उम्मीदवार सूर्य नारायण यादव तीसरे स्थान पर रहे थे. इस बार जदयू ने विश्वमोहन कुमार को बेटिकट कर दिया तो वे भाजपा में शामिल हो गए. विश्वमोहन कुमार की पत्नी सुजाता देवी पिपरा विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे पार्टी ने अब निलंबित कर दिया है.
      फिलवक्त चुनावी मैदान में भाजपा के कामेश्वर चौपाल, कांग्रेस की रंजीत रंजन और जदयू के दिलेश्वर कामत के बीच त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. कामेश्वर चौपाल राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े चर्चित व्यक्ति रहे हैं और इसी जिले के निवासी हैं. कांग्रेस की रंजीत रंजन और पूर्व में जब सुपौल सहरसा लोकसभा का हिस्सा था क्षेत्र का संसद में प्रतिनिधित्व कर चुकी है और बाहुबली पप्पू यादव की पत्नी है. दिलेश्वर कामत पूर्व में विधायक रह चुके हैं और इसी जिले के रहने वाले हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी के परमेश्वर झा और बहुजन मुक्ति पार्टी के देव नारायण यादव, बसपा के अमन कुमार समाजसेवी और भाकपा-माले के जय नारायण यादव समेत कुल 12 प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में मौजूद हैं. कांग्रेस के लिए यह वापसी का मौका है तो जदयू को अपना गढ़ बचाना है और भाजपा स्वतंत्र अस्तित्व की निर्णायक लड़ाई लड़ रही हैं.
      जातीय समीकरण की बता करें तो मोटे अनुमान के तौर पर यहाँ सर्वाधिक संख्यां यादव की है. यादवों के बाद सबसे अधिक संख्यां केवट (मंडल) की है. इसके अलावा दलित, महादलित, वैश्य एवं अति पिछडों की संख्यां अच्छी खासी है. सवर्णों की संख्यां लगभग एक लाख बताई जाती है. कॉंग्रेस की रंजीत रंजन को माय समीकरण पर भरोसा है और सवर्ण एवं अन्य पिछड़ी जातियों पर भी वह दावा पेश करती है. वहीँ भाजपा के कामेश्वर चौपाल को वैश्य, अति पिछड़ा एवं सवर्णों से उम्मीद के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की लहर पर भरोसा है. जदयू के दिलेश्वर कामत को केवटों के साथ-साथ सवर्णों और महादलितों से उम्मीद है और उन्हें नीतिश कुमार के कामकाज के आधार पर भी जनसमर्थन की आशा है. जातीय समीकरण से स्पष्ट है कि एक ही जाति पर कई प्रत्याशियों की नजर है. खासकर जदयू और भाजपा का एक ही वोट बैंक पर नजर है और यह चुनाव जातीय वोट बैंक का विभाजन भी तय करेगा.
      तमाम हलचल के बाद भी मतदाता खामोश हैं और अपना पत्ता खोलने से परहेज कर रहे हैं. वहीँ सभी प्रमुख दलीय प्रत्याशी भीतरघात के दौर से गुजर रहे हैं. भीतरघात की स्थिति सर्वाधिक कांग्रेस, राजद और भाजपा में तो कमोबेश जदयू और आप में भी है. मतदाताओं की चुप्पी समझ से परे है, लेकिन इशारों को अगर अभिव्यक्ति समझा जाए तो स्पष्ट है कि कोशी के कछार पर जातीय समीकरण ही परिणाम तय करेगा क्योंकि अबतक यहाँ वोट और बेटी अपनी जाति को ही देने की परंपरा रही है. एक खास बात यह है कि अंतिम समय में वोटों के ध्रुवीकरण से भी इनकार नहीं किया जा सकता. अगर ऐसा हुआ तो परिणाम में बड़ा उलटफेर संभव है जो चौंकाने वाला भी हो सकता है.    
मुद्दे पर ना बात पर, बटन दबेगा जात पर !: सुपौल लोकसभा पर एक रिपोर्ट मुद्दे पर ना बात पर, बटन दबेगा जात पर !: सुपौल लोकसभा पर एक रिपोर्ट Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 22, 2014 Rating: 5

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