यदि फिर डकैतों ने उठा लिए हथियार!: सपने दिखाकर सरकार ने कराया आत्मसमर्पण, पर दिया धोखा

|आर. एन. यादव|22 अप्रैल 2014|
घोड़ों की टाप से थर्राता इलाका. लोगों की रातें करवटें बदलते कटती थी कि न जाने कब दर्जनों की संख्यां में आग्नेयास्त्र के साथ डकैत उनके घर पर धावा बोल दे और जिंदगी भर कि कमाई साथ लेकर चला जाय. एक समय था जब मधेपुरा के इलाके में भी डकैतों का बोलबाला था और महिलाओं की आबरू तक उन्हीं की दया पर बची रहती थी. रौब जमाने वाली पुलिस घटनास्थल पर तब पहुँचती थी जब डकैत वहाँ से आराम से चले जाते थे. हालात बदले और डकैतों ने भी सूबे के विकास में अपना योगदान करना चाहा. सरकार ने इन्हें आत्मसमर्पण करने पर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का वादा किया. पर क्या हुआ उसके बाद. क्या नेताओं ने अपनी जात दिखा दी? क्या डकैत पर भी भारी पड़ गए नेता जी ? जी हाँ, कुछ ऐसा ही हुआ है मधेपुरा के डकैतों के साथ.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष वर्ष 2005 में आत्म समर्पण कर समाज के मुख्य धारा में जुड़ने की चाहत रखे कुख्यात अपराधी आज दाने-दाने को है मुंहताज. यही नहीं स्थानीय पुलिस डरा धमका कर वसूली करने में लगे हैं. पैसे नही देने पर जेल भेजने की धमकी देते हैं पुलिस वाले. सरकार द्वारा की गई घोषणा हवा-हवाई साबित हुई. तो किये गये वायदे साबित हुए ढाक के तीन पात. अब तक नही मिला जीवन यापन का कोई सहारा. उलटे पुलिस इन्हें परेशान कर रही है और पुलिस के डर से ये आत्म समर्पणकारी दिन रात दियारा क्षेत्र के जंगल झाड़ में जीवन बिताने को मजबूर हैं.
मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के टेंगराहा गांव के जनार्दन सरदार, परमानन्द सरदार, सोनाय सरदार जैसे 5 दर्जन कुख्यात डकैत और अपराधी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष 2005 ई0 में सिंहेश्वर के मवेशी हाट में आयोजित सभा में आत्मसमर्पण किये और इन्होने समाज के मुख्य धारा में जुड़ने का निर्णय लिया था. पर सरकार द्वारा कराया गया आत्मसमर्पण झांसा निकला. सरकार के द्वारा नही लिए गये मुकदमें वापस.
आइये देखते हैं कि किन आश्वासनों पर डकैतों को छला गया. मुख्यमंत्री द्वारा घोषणा किया गया था कि सभी आत्मसमर्पणकारियों को जीवन यापन के लिए उपजाऊ जमीन दिया जाएगा. इंदिरा आवास तथा बैंक से ऋण मिलेगा, बच्चों को मुफ्त में शिक्षा के लिए मिड्ल व हाई स्कूल दिया जाएगा. सभी मुकदमें भी वापस ले लिए जाएंगे तथा इस गांव में स्थाई पुलिस चौकी भी खोला जाएगा.
लेकिन आज तक इन आत्मसर्पणकारियों को सरकार द्वारा कुछ भी नही दिया गया. एक हाई स्कूल ग्रामीणों के सहयोग से तो खोला गया पर आज तक स्कूल का सरकारीकरण सरकार द्वारा नही किया गया जिसके कारण स्कूल में कार्यरत शिक्षक व कर्मी दाने-दाने को मुंहताज हैं क्योंकि इन्हें वेतन नही मिलते हैं तो बच्चों को क्या शिक्षा दे पाएंगे. आत्मसर्पणकारी के बच्चों को रहने के लिए करोडों की लागत से विशाल छात्रावास भी बनाया गया है जो निरर्थक साबित हो रहा है क्योकि यहां के स्कूल में पठन पाठन का कार्य ही नही होता है तो बच्चें कहां से आएंगे. इस गांव में पुलिस ओपी तो बनकर कई साल पूर्व तैयार हो गया पर आज तक चालू नही हो सका है.
इन सारी समस्याओं को झेल रहे आत्मसमर्पणकारी को स्थानीय भतनी थाना के थानेदार बंधी बंधाई रकम के लिए तंग तबाह करते हैं और नही देने पर जेल भेजने की धमकी देते जिसके कारण ये आत्मसर्मणकारी मारे-मारे दियारा के जंगल व झाडी में पुलिस के डर से छिप-छिप कर दिन काटते हैं. अब ये नदी से मछली मार कर पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं.
सरकार की वादाखिलाफी और पुलिस की करतूत से आहत आत्मसमर्पणकारी आगामी लोक सभा चुनाव में वोट नही डालने का निर्णय ले रहे हैं.
स्थानीय जदयू विधायक रमेश ऋषिदेव सीधे कह डालते हैं कि सरकार द्वारा बहुत कुछ दिया गया है. वहीँ मधेपुरा एसपी आनंद कुमार सिंह ने कहा कि अगर जानबुझकर थानेदार तंग तबाह करता है तो इसकी जांच कर थानेदार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.
पर अगर पुलिस के द्वारा इसी तरह इन आत्मसमर्पणकारी  को प्रताड़ित करने का सिलसिला चलता रहा तो आजीज होकर ये आत्मसमर्पणकारी फिर से उठा सकते हैं हथियार और इलाके में फिर से गूँज सकती है गोलियों की आवाज. बेहतर है सरकार इन्हें वायदे के अनुसार मुख्य धारा में जोड़ ले.
यदि फिर डकैतों ने उठा लिए हथियार!: सपने दिखाकर सरकार ने कराया आत्मसमर्पण, पर दिया धोखा यदि फिर डकैतों ने उठा लिए हथियार!: सपने दिखाकर सरकार ने कराया आत्मसमर्पण, पर दिया धोखा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 22, 2014 Rating: 5

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