रूद्र ना० यादव/१५ दिसंबर २०११
“कभी चिलमन से ये देखे,
कभी चिलमन से वो देखे,
लगा दो आग चिलमन में,
न ये देखे, न वो देखे.”
आलमनगर के मुरौत के इस मिड्ल स्कूल का हाल स्थानीय लोगों और प्रशासन ने जो बना दिया है,उस पर ये कविता सटीक बैठती है.कटाव के कारण गाँव विलीन क्या हुआ,यह विद्यालय को लोगों और प्रसाशन की खींचातानी में बर्बाद होकर रहा गया, और इस स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का भविष्य अधर में अटक गया.स्कूल के १६ शिक्षकों को अपनी जान इन बच्चों की जान से प्यारी लगी और वे फरार हो गए.कहा यहाँ काफी खतरा है,कभी भी भवन को कुछ हो सकता है.पर बच्चे पढाई के लिए तरस रहे हैं तो वे खुद ही विद्यालय पहुँचते हैं और आपस में ही पढ़ लिखकर समय से घर लौट जाते हैं. इन मासूम बच्चों के चेहरे को गौर से देखिये,आपको भी तरस आ जायेंगे.पर इन मासूमों की चिंता न तो स्थानीय मंत्री को है और न ही प्रशासन को.इन बच्चों के भविष्य का क्या है?कीड़े-मकोड़े की तरह आये है और यूं ही गुमशुदा होकर रह जायेंगे. नेताओं और प्रशासन के लोगों के बच्चे तो अच्छे-अच्छे कौन्वेंट्स में पढ़ रहे हैं न!
आलमनगर का मुरौत गाँव का अधिकाँश हिस्सा कोसी के कटाव में बह गया तो गाँव के मंडल जाति के लोग विस्थापित होकर पास के ही सोनामुखी गाँव में बस गए,जबकि ज्यादा गरीब नागर जाति के करीब २० परिवार अभी भी गाँव में ही रहने को मजबूर हैं.गाँव में स्कूल अभी तक सुरक्षित है.गाँव में रहने वाले लोगों का कहना है कि जब तक स्कूल सुरक्षित है,तब तक इसे गाँव में ही चलना चाहिए.जबकि सोनामुखी में जाकर बस गए लोगों का कहना है कि अब ये स्कूल सोनामुखी में चले.मामला लोकल पॉलिटिक्स में फंस गया और इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री ने वोट की खातिर खुद निर्णय नहीं लेकर जिला प्रशासन को उचित कार्यवाही करने से सम्बंधित पत्र भेजा.आपसी खींचातानी में जब हालात ये बन गए कि कभी चिलमन से ये देखे,कभी चिलमन से वो देखे तो प्रशासन ने कोई सटीक निर्णय नहीं लेते हुए कहा कि लगा दो आग चिलमन में न ये देखे, न वो देखे.
शिक्षा के लौ से वंचित हैं नौनिहाल,प्रशासन मूक दर्शक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 15, 2011
Rating:
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 15, 2011
Rating:

अब हमारा लक्ष्य है क़ि हम यैसा काम करे जिसमे राजनीति दिखाई न दे . यह काम समाजसेवा हो सकता है. अब रही बात बच्चो के बीच जाकर उन्हें प्रोत्साहित करना उनकी प्रतिभा को निखारने का तो हम सन २००७ से काम कर रहे है. लेकिन हम यह नही समजा पा रहे है. क़ि यैसे काम में भी हमारे पत्रकार साथी इसमें भी परेसान है. उन्हें तकलीफ है. वह ईस्वर के लिए दो हाथो से अच्छा लिखने का साह्श नही कर पा रहे है. अपराधिक घटनाओ को प्रमुखता देते है. समाज के हम उन लोगों क़ि भी खोज करने में लगे है है जो ईमानदारी से अपना कर्तब्य का पालन कर रहे है. तथा सामाजिक कार्य करने में आगें है. इन कार्यो से मन क़ि शांति व भारतीय संक्रती संस्कारों क़ि सुरक्षा होगी. आपका क्या ख्याल है. ..?
ReplyDelete---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------