रमजान: मजहब-ए-इस्लाम का रुक्न

सज कर तैयार है मधेपुरा की जामा मस्जिद
पंकज भारतीय/०२ अगस्त २०११
रमजान के न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक एवं सामजिक आयाम भी,सदके फितर का है रिवाज
पाक संग्रह हदीस के अनुसार जिसने रमजान के रोजे ईमान और यकीन के साथ रखा, उसके अगले और पिछले तमाम गुनाह बख्स दिए गए.जाहिर है रमजान की अहमियत यह है कि जब इस महीने में रोजेदार रोजा रखते हैं तो रोजा रखने की वजह से उसके गुनाह धुल जाते हैं.इस पाक महीने में रोजेदार इंसान खुदा के मुसाबहत अख्तियार कर लेता है.लब्बोलुआब यह है कि रमजान (रोजा) मजहब-ए-इस्लाम के पांच अरकान में से एक अहम रुक्न है.
रोजा नही रखने वाले मुनक्कर: रोजा सिर्फ मुसलमान या साहबे इमान,अकिल,बालिग़,मर्द और औरत पर फर्ज है.बीमार एवं लंबी यात्रा पर के लोगों को इससे छूट मिलती है.रोजा नहीं रखने वाले अर्थात इस्लाम के एक अहम रुक्न को छोड़ने वाले हदीस के मुताबिक़ मुनक्कर हो जाता है.जिसकी सजा मरने के बाद जहन्नुम की आग है.
क़ज़ा और कफ्फरा का है प्रावधान: रोजे की हालत में सुबह से लेकर शाम तक खान-पान की कोई भी चीज मुंह में रखना वर्जित है.ऐसा करने से रोजा टूट जाता है.रोजे की हालत में इन चीजों का इस्तेमाल जिसने जिसने भूल से भी किया उसपर क़ज़ा यानी एक अतिरिक्त रोजा जमा हो जाता है.रोजा रखने के बाद यदि जान-बूझकर खा-पी लिया गया तो एक रोजा के बदले ६० रोजे रखने पड़ेंगे.साथ ही उसका एक रोजा अलग से यानी क़ज़ा और कफ्फरा दोनों लाजिमी होगा.
सदके फितर का है रिवाज: रोजा से एक और चीज का पता चलता है कि गरीब और मोहताज इंसान ग़ुरबत की वजह से भूखे की सख्ती को कैसे बर्दाश्त करते हैं.साहेब-ए-माल जब रमजान में रोजा रखते हैं तो रोजे की हालत में इसका एहसास होता है.ऐसे में रोजेदार का दिल जाग उठता है और ग़रीबों को पैसे तथा कपड़े से मदद की जाती है.जिसको इस्लाम के अंदर सदके फितर कहा जाता है.
     जाहिर है रमजान के पाक महीने का न केवल धार्मिक महत्त्व है, वरन सामजिक एवं स्वास्थ्य की बेहतरी के लिहाज से भी कई आयाम हैं.पवित्र ग्रन्थ कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है ए ईमान वालों ! तुम्हारे ऊपर रमजान के रोजे फर्ज किये गए हैं,जिस तरह से तुमसे पहली उम्मतों पर रोजा फर्ज किया गया था.
रमजान: मजहब-ए-इस्लाम का रुक्न रमजान: मजहब-ए-इस्लाम का रुक्न Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 02, 2011 Rating: 5

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