दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला कि रिश्ते में भाई-बहन लगने वाले हिन्दू युवक-युवती ईसाई धर्म अपनाकर विवाह कर सकते हैं, एक नयी परंपरा को जन्म दे सकती है.मामला था एक रिटायर्ड जज के द्वारा उस याचिका का, जो उन्होंने अपने मजिस्ट्रेट के बेटे द्वारा अपनी ममेरी बहन से शादी कर लेने के बाद दायर की थी.मजिस्ट्रेट के बेटे ने अपनी ममेरी बहन से शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन के ईसाई धर्म अपना लिया था.मालूम हो कि ऐसे विवाह हिंदू धर्म में ‘सपिंडा’ कानून के तहत प्रतिबंधित हैं जबकि ईसाई धर्म विवाह अधिनियम की धारा ३ के अनुसार ऐसे विवाह को उचित माना गया है.दिल्ली हाई कोर्ट ने लड़के के पिता को फटकार भी लगाई और कहा कि इस तरह की सोच नई पीढ़ी की व्यापक सोच को नष्ट करती है और कई बार ऐसी ही बातों पर झूठी शान के लिए हत्या तक हो जाती है.कोर्ट ने इससे भी आगे जाकर याचिकाकर्ता पर ‘विचार न करने योग्य मामला’ दर्ज करने के लिए दस हजार रूपये का जुर्माना भी लगा दिया.
न्यायालयों के ऐसे फैसले से समाज में कई परिवर्तन आने की आशंका बनती है.हिन्दू धर्म में भाई-बहन के रिश्ते को अत्यंत ही पवित्र माना जाता है, भले ही बदलते समाज में कहीं-कहीं हमें रिश्ते में लगने वाले भाई-बहन के सम्बन्ध के कलंकित होने की भी ख़बरें मिल जाती हैं.दूसरी बात कि हिन्दू धर्म और समाज में ऐसे रिश्ते प्रतिबंधित होने के कारण अगर किसी के मन में यदि एक पल के लिए ऐसी बात आ भी गयी तो वह ऐसे विचार को पाप समझकर अपने मन से झटक दिया करता हैं.पर न्यायालय के ऐसे फैसले युवा सोच को और भी विकृत कर सकती है और हो सकता है
कि ऐसे संबंधों के विषय में युवाओं की सोच तैयार होने लगे और इसे मुकाम तक पहुँचाने के लिए हिंदू युवा ईसाई धर्म के क़ानून को हथियार बनाना आरम्भ कर दें.शायद न्यायालय और समाज को जरूरत है ऐसे संबंधों पर फिर से विचार करने की,वर्ना धर्म परिवर्तन का सिलसिला चल निकला तो शायद ही कोई सम्बन्ध पाक-साफ़ रह सकेगा.
कि ऐसे संबंधों के विषय में युवाओं की सोच तैयार होने लगे और इसे मुकाम तक पहुँचाने के लिए हिंदू युवा ईसाई धर्म के क़ानून को हथियार बनाना आरम्भ कर दें.शायद न्यायालय और समाज को जरूरत है ऐसे संबंधों पर फिर से विचार करने की,वर्ना धर्म परिवर्तन का सिलसिला चल निकला तो शायद ही कोई सम्बन्ध पाक-साफ़ रह सकेगा.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
क्या दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला समाज में विकृति को बढ़ावा नहीं देगा?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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August 02, 2011
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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह न्यायोचित और समयानुकूल है /समाज की विकृति न्यायालय के किसी आदेश का मोहताज नहीं होता /विकृति है और होता रहेगा /न्यायालय इस विकृति को दूर या कम करने का काम करती है /मैं न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करता हूँ /
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