डीएम की बेटी सरकारी स्कूल में तो फिर हमारी-आपकी क्यूं नहीं?

डीएम आनन्द और उनकी बेटी  गोपिका
राकेश सिंह/२७ जून २०११
इरोड, तामिलनाडू के नए डीएम डा० आर.आनंद कुमार ने अपनी बेटी का एडमिशन सरकारी स्कूल में करवाया तो पूरे देश में ये बहस का मुद्दा बन गया कि कौन सा स्कूल बेहतर- सरकारी या फिर कॉन्वेंट? इस मुद्दे पर डा० आर. आनंद कुमार के जो विचार सामने आये, उसने बहुतों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया.उस दिन हुआ यूं था कि इरोड के एक सरकारी स्कूल में एडमिशन हेतु पूछताछ के लिएर अभिभावकों की लाइन लगी थी, और उस लाइन में खड़े थे डीएम आनन्द कुमार.प्रिंसिपल ने पहचाना तो उनसे लाइन से बाहर आने का रिक्वेस्ट ये कहकर किया कि आपको लाइन में खड़े रहने की क्या जरूरत है.पर डीएम ने कहा कि वे यहाँ एक बेटी के बाप की हैसियत से आये हैं.खैर गोपिका का एडमिशन हुआ और डीएम साहब ने निर्देश दिया कि मेरी बेटी भी मिड डे मील खायेगी और सबों के साथ खेलेगी.पत्रकारों के पूछने पर डीएम साहब ने कहा कि इसे मुद्दा न बनाया जाय, ये मेरा निजी फैसला है,मैंने भी सरकारी स्कूल में पढ़ा है. डीएम आनन्द को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. 

    आज कॉन्वेंट स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली में खुल रहे है.सरकारी स्कूलों का क्रेज दिनों दिन गिरता ही जा रहा है.ये बात अलग है कि बिहार में सरकारी स्कूलों की संख्यां भी सरकार बढ़ा रही है और शिक्षक भी भारी मात्रा में बहाल हो रहे हैं.पर समाज के संपन्न लोग सरकारी स्कूलों में बच्चों को
पढ़ाना उनके भविष्य से खिलवाड़ करने जैसा मानते हैं.बात बहुत हद तक सही भी है.खासकर बिहार में नियोजित शिक्षकों ने तो पढ़ाई का बेड़ा गर्क कर रखा है.(पढ़ें:क्या बिहार में शिक्षा की स्थिति में वाकई सुधार हो रहा है?)ये एक बहस का मुद्दा है.अधिकांश कौन्वेंट्स की हालत भी कुछ इतर नही है.वहां भी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही किया जा रहा है.बस्तों के बोझ तले  दबे कई बच्चे पढ़ाई से डरते हैं.स्कूल वालों की भी मौज है,हर स्टेप पर कमीशन और इसमें कोई शक नही की कौन्वेंट्स पूरी तरह व्यवसाय बन चुका है.कुछ को छोड़कर यहाँ भी स्तरहीन शिक्षकों की भरमार होती है. पढ़ने वाले बच्चे खासकर जिसके अभिभावक पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं, ही बेहतर कर रहे हैं.बाकी अभिभावक बेहतर पढ़ाई के प्रलोभन में आकर अपने बच्चों को इस कॉन्वेंट से उस कॉन्वेंट दौड़ा रहे है,फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात ही दिख रहा है.
  आकड़ों पर यदि गौर करें तो बिहार में ९५% बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढते है.इस बार बोर्ड से लेकर आईईटी तक में सरकारी स्कूल में पढ़े बहुत से बच्चों ने अभाव के बीच भी बेहतर प्रदर्शन किया है.ऐसे में ये एक बड़ा मुद्दा है कि बेहतर कौन? सरकारी स्कूल या फिर प्राइवेट? सरकार सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने में प्रयासरत दिख रही रही है.यहाँ आवश्यकता इस बात की भी है कि यदि समाज के कुछ जागरूक और पढ़े लोग आगे आयें और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था सुदृढ़ करवाने की कोशिश की जाय तो शायद सरकारी स्कूल इन कौन्वेंट्स पर भारी पड़ने लगें.
डीएम की बेटी सरकारी स्कूल में तो फिर हमारी-आपकी क्यूं नहीं? डीएम की बेटी सरकारी स्कूल में तो फिर हमारी-आपकी क्यूं नहीं? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 27, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. You are Great Dear D.M. R Anand Kumar Saheb.You are perhaps the true follower of Anna Hazare.Your daughter Gopika will achieve and taste of the peake of Success.GOD bless her.
    With love,
    Premjit from PUNJAB.

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