घुमंतू जातियों का विकास:प्रधान संपादक की सलाह मानी थी सरकार

राकेश सिंह/१५ जून २०११
हम बंजारों की बात मत पूछो जी.....सन १९७७ की सुपरहिट फिल्म धरम-वीर का ये गाना काफी हिट हुआ था और इस फिल्म में बंजारा यानी घुमंतू जनजाती की जिंदगी के सच के कुछ पहलू को भी उजागर किया गया था. अगर देखा जाय तो बंजारों की जिंदगी काफी असह्य होती है.शहर के किनारे तम्बू डाल कर रहते परिवार, जिनका बिछावन जमीन और छत आसमान होता है,आज यहाँ हैं तो कल की रात कहाँ गुजरेगी ये शायद उन्हें भी नही पता.एकाध महीने में शहर
बदल जाते हैं और बदल जाते हैं इनकी जिंदगी के रंग भी.वैसे कहा जाय तो इनकी जिंदगी में रंग बहुत ही कम होते है.रस्सी पर करतब दिखाना, मिट्टी की मूर्तियां आदि बना कर जिंदगी काटना इनकी मजबूरी है.इनके पास न तो रहने के लिए जमीन है और न ही पेट चलाने का कोई स्थायी
उपाय.जगह स्थायी नही रहने के कारण इनकी जनसंख्यां का आकलन भी काफी मुश्किल काम रहा है, पर अंदाजा ये है कि इनकी जनसंख्यां ६ करोड़ से भी ज्यादा है.सरकार द्वारा इन्हें सहायता के यत्न तो किये गए,पर इन्हें वाजिब सहायता अब तक नही मिल पायी.कभी-कभी तो पुलिस इन्हें अपराधी समझ कर तंग-तबाह भी करती रही है.अक्सर न तो इनके पास कोई पहचानपत्र होता है
और न ही ये किसी चुनाव में हिस्सा ले पते हैं क्योंकि इनका न कोई घर है न ठिकाना.अर्थात इन्हें लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा भी नही माना जा सकता है.
प्रधान संपादक को सरकार का पत्र 
    जहाँ तक सरकारी प्रयास की बात है तो भारत सरकार ने भी इनके विकास के लिए राष्ट्रीय विमुक्त,घुमंतू तथा अर्ध-घुमंतू जनजाति आयोग का गठन किया, जिसके अध्यक्ष बालकृष्ण रेणके बनाये गए.आयोग ने इनका विकास कैसे हो? पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए लोगों के सुझाव भी मांगे.०२ जुलाई २००८ को आयोग ने अपनी सिफारिशों की रिपोर्ट श्रीमती मीरा कुमार, तत्कालीन मंत्री सामजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय,भारत सरकार को सौंपी. हमें पाठकों को यह बताते काफी खुशी हो रही है कि मधेपुरा टाइम्स के प्रधान संपादक रूद्र नारायण यादव के द्वारा दिए गए तकरीबन सारे सुझाव इस रिपोर्ट में मान लिए गए थे.इस बाबत भारत सरकार ने श्री यादव को पत्र लिखकर भविष्य में भी सहयोग की अपेक्षा की थी.तत्पश्चात बालकृष्ण रैनके की रिपोर्ट तो लागू हो गयी,पर इन जनजातियों का जीवन आज भी सरकार की लापरवाही से संघर्ष से भरा हुआ है. आवश्यकता है सरकार को इनके प्रति सहानुभूति रखते हुए इन पर और ध्यान देने की ताकि इनका जीवन स्तर सुधर सके.
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