गबन,घोटाले और अनियमितता विश्वव्यापी हैं पर ये भी सच है कि समय-समय पर इन घोटालों के पर्दाफ़ाश ने सरकार तक की नींव हिला कर रख दी है.ये बात हम बार-बार लिखते चले आ रहें है कि कोशी में बाढ़ के बाद राहत के नाम पर जो लूट और घोटाले हुए उसने इस इलाके के सभी घोटालों को पीछे छोड़ दिया है.नीतीश सरकार के कई अच्छे कामों के पीछे ये बात दब कर रह गयी कि कोशी त्रासदी और उससे हुई मौतें और क्षति के लिए कौन लोग जिम्मेवार हैं.कोशी की त्रासदी को अगर कहर,तबाही,कोहराम और प्रलय कहा गया है तो इसके बाद के घोटाले को भी महाघोटाला कहा जाना चाहिए.सीधी बात है कि इस महाघोटाले का जिम्मेवार अगर नीतीश सरकार सीधे तौर पर नही है तो निश्चय ही जिला प्रशासन,जिसे राहत कार्यों की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी,इसके लिए जिम्मेवार है.एक और सीधी बात कि जब हमारे पास इन घोटालों के सबूत हैं तो ये बात अविश्वसनीय है कि राज्य सरकार को इसकी जानकारी नही है.और यदि राज्य सरकार को इसकी जानकारी है,तो हमें देखना है कि 'भ्रष्टाचारियों की जगह सलाखों के पीछे' का नारा लगाने वाली सरकार क्या इसमें शामिल अपने तथाकथित प्रियजनों को सलाखों के पीछे डालती है या नही? विधानसभा में यह मुद्दा उठना तय हो गया है.और ये भी देखना है कि कहीं जरूरत से ज्यादा मजबूत सरकार विरोधियों की आवाज को दबा तो नही देती है?
जो भी हो,महाघोटाले की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि एक दिन में इसे प्रकाशित करना संभव नही है.हम कर रहे है इन महाघोटालों को कई कड़ियों में उजागर.पहली कड़ी शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है.आशा है कि हमारे पाठक इसे निष्पक्ष रूप में लेंगे.हाँ,अंत में...आपकी बेबाक टिप्पणी ही हमें भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में खड़ा रख सकेगी.अत: अपनी टिप्पणी मधेपुरा टाइम्स के पेज पर प्रत्येक कड़ी के नीचे जरूर लिखें.
आपका
रूद्र नारायण यादव
प्रधान संपादक
महाघोटाले का पर्दाफ़ाश:कड़ियों की झड़ी मधेपुरा टाइम्स पर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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February 26, 2011
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कोसी त्रासदी के दौरान यह मीडिया छानबीनो से स्पष्ट हो गया था की नितीश सरकार और उसके वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र यादव पर यह आरोप सही प्रतीत हो रहा था की उनके भ्रष्टाचार में लिप्त रहने से तथा विभाग व उसके मंत्री के अपराधिक लापरवाही से ही कोसी त्रासदी हुई जिससे लाखों लोगों के जान माल का नुक्सान हुआ. मामले की लीपापोती के लिए अपने पिछले कार्यकाल में नितीश कुमार ने सेवानिर्वित न्यायमूर्ति राजेश वालिया की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया. आयोग को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी और अब चार वर्ष होने को है, लेकिन रिपोर्ट का अता-पता नहीं है. यह अलग बात है की मंत्री स्तर की सुख सुविधायों प्राप्त करने से आयोग पर करोड़ों रूपये खर्च हो चुके हैं. जहाँ एक ओर बाढ़ पीड़ितों को उचित मुआवजा नहीं मिला है, वहां नितीश सरकार के पाप को छुपाने के लिए इस पैसे का दुरोपयोग कहाँ तक उचित है?
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