भीड़ का न्याय:कितना उचित,कितना बेहूदा?

रूद्र नारायण यादव/१८ नवंबर २०१०
धनतेरस के दिन सिंघेश्वर के महालक्ष्मी ज्वेलर्स में लूट के प्रयास में भीड़ का शिकार बने अभियुक्त जयकुमार यादव की स्थिति बिगड़ती ही जा रही है.मामला मानवाधिकार आयोग तक जा रहा है. दरअसल उस दिन की घटना ने लोगों को गंगाजल फिल्म की याद दिला दी थी. भीड़ ने इस अभियुक्त को पकड़ा तो ठीक था लेकिन उसके बाद जो भीड़ ने किया वो दिल दहला देने वाला है.तथाकथित भीड़ में से कुछ लोग बेहूदा और नृशंस हरकत पर उतर आये और कहीं से गंगाजल (तेज़ाब) लाकर जय कुमार यादव के शरीर पर डाल  दिया जिससे उसके सीने  और गुप्तांग का गलना शुरू हो गया.हालत बिगड़ने पर उसे इलाज के लिए जेल से मधेपुरा अस्पताल ले जाया जाता था और फिर जेल वापस लाकर पटक दिया जाता था.मधेपुरा जेल के कैदियों ने जब हंगामा शुरू किया तो जय कुमार को अब इलाज हेतु सदर अस्पताल मधेपुरा में दाखिल करा दिया गया है.परन्तु उसके शरीर की स्थिति इतनी बदतर हो गयी है की उसे फ़ौरन इलाज के लिए बाहर भेजे जाने की आवश्यकता है.
   ये बात अलग है की मधेपुरा जिले में अपराध में काफी कमी आई है और अब लोग इसे बर्दाश्त करने के मूड में नही दीखते परन्तु क़ानून को इस तरह हाथ में लेकर किसी की जिंदगी को गंगाजल आदि से तबाह करना यह तो दर्शाता ही है की भीड़ में भी अपराधी चरित्र के लोग शामिल हो जाते हैं
भीड़ का न्याय:कितना उचित,कितना बेहूदा? भीड़ का न्याय:कितना उचित,कितना बेहूदा? Reviewed by Rakesh Singh on November 18, 2010 Rating: 5

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