नहाय-खाय के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ

मधेपुरा में भी नहाय-खाय के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो गया. इलाके में घाटों की सफाई का काम लगभग पूरा हो गया है और प्रशासन के द्वारा भी सभी घाटों की सुरक्षा के लिए सारी व्यवस्था की गई है. मधेपुरा में यह पर्व बड़े ही उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है.


आइये एक बार फिर हम जानते हैं छठ पर्व का पौराणिक महत्त्व....


छठ का व्रत संतान की प्राप्ति और लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत को स्त्री-पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ हो जाता है और षष्ठी तिथि को मुख्य छठ व्रत करने के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूरज को जल देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है। इस बार 8 नवंबर को नहाय-खाय से छठ व्रत का आरंभ होगा। अगले दिन 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ पर्व के व्रत का पारणा किया जाएगा। इस व्रत में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना की जाती है और उगते वह अस्त होते सूर्य को जल दिया जाता है। इसी के साथ छठ के महापर्व में छठी मैया के पूजन का विधान है। 

तो चलिए जानते हैं कि क्यों किया जाता है छठ पर सूर्य पूजन और कौन हैं छठी मईया।


कौन हैं छठी मईया


धार्मिक मान्यता के अनुसार, छठ मईया को ब्रह्मा का मानस पुत्री कहा जाता है और कहा जाता है कि ये वही देवी हैं जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को की जाती है। इनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति व संतान को लंबी उम्र प्राप्त होती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्य देव की बहन भी माना जाता है। 


सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे ये है पौराणिक कथा


पौराणिक कथा के मुताबिक छठ पर्व का आरंभ महाभारत काल के समय में माना जाता था। कर्ण जन्म सूर्यनारायण के द्वारा दिए गए वरदान के कारण कुंती के गर्भ से हुआ था। इसलिए ये सूर्य पुत्र कहलाते हैं और सूर्यनारायण की कृपा और इनको कवच व कुंडल प्राप्त हुए थे व सूर्य देव के तेज और कृपा से ही ये तेजवान व महान योद्धा बने। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण के द्वारा सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य पूजा करते थे एवं उनको अर्घ्य देते थे। इसलिए आज भी छठ में सूर्य को अर्घ्य देने परंपरा चली आ रही है। इस संबंध में एक कथा और मिलती है कि जब पांडव अपना सारा राज-पाठ कौरवों से जुए में हार गए, तब दौपदी ने छठ व्रत किया था। इस व्रत से पांडवों को उनका पूरा राजपाठ वापस मिल गया था।
(छठ का पौराणिक महत्त्व: साभार अमर उजाला)


नहाय-खाय के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ नहाय-खाय के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 08, 2021 Rating: 5

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