गांव के नये लोग तो जानते भी नहीं है कि रातों में 'जागते रहो' की आवाज कभी गूंजती थी. पुराने लोग अभी भी आस लगाये है कि अंधेरी रातों में कब
गूंजेगी 'जागते रहो' की आवाज।
इससे भी हद तो यह कि अब थाना क्षेत्र में कार्यरत चौकीदार व दफादार अपनी
पुरानी पहचान की भाषा 'जागते रहो' की
आवाज को भी भूल चुके हैं? अब चौकीदारों और दफादारों की जुबान पर रहता है जी हुजूर-जी मेम साहब। यह
स्पष्ट है कि जब से चौकीदारों को सरकारी सेवक घोषित किया गया,
उसकी कार्यशैली में ही परिवर्तन आ गया है। पहले चौकीदार
गांव में ही काम करते थे लेकिन अब चौकीदारों का काम थाना से लेकर शहर की सड़कों और
कार्यालयों के साथ-साथ साहब के आवास पर सीमित हो गया है। नतीजतन अपना काम चौकीदार
भूल चुके हैं.
गांव-मुहल्लों की गलियों में जागते रहो की आवाज अब बीते
दिनों की बात होकर रह गयी है। चौकीदार द्वारा सजग रहने के लिए रात्रि में जो
हथकंडे अपनाये जाते थे। अब शायद ही कहीं देखने को मिलते हैं। पहले जब पुलिस तंत्र
उतनी विकसित नहीं थी, तब लोग पुलिस के नाम से भय खाते थे और ग्रामीण क्षेत्रों में
सबसे छोटे कर्मी चौकीदार की भी काफी इज्जत थी। गांव की गलियों व मुहल्लों में बड़े
बुजुर्ग का नाम लेकर रामू भइया, मोहन काका जागते रहे की आवाज चौकीदार द्वारा लगायी जाती थी।
इस आवाज को सुनकर लोग सजग रहते थे तथा समय की भी जानकारी हो जाती थी।
स्थानीय चौकीदार को समाज के हर वर्ग के बारे मे निश्चित जानकारी होती थी और वे
समाज के हर गतिविधियों पर ध्यान रखते थे। गांव में किसी भी नये आदमी का प्रवेश
किसके यहां हो रहा है और कहां क्या हो रहा है इसकी जानकारी चौकीदारों द्वारा
थानाध्यक्ष को उपलब्ध कराया जाता था। थानाध्यक्ष को इससे प्राप्त सूचना से कानून
व्यवस्था बनाये रखने में काफी मदद मिलती थी। लेकिन अब वक्त के साथ-साथ चौकीदारों
की भी भूमिका बदल गयी है। अब ये बैंकों, चौक-चौराहो व व्यवसायी प्रतिष्ठानों तक ही सीमित रह गये
हैं। गांवों में प्रति दिन पहरेदारी की प्रथा पर आधुनिकता की परत चढ़ने का नतीजा
है कि शहर से लेकर गांव तक में चोरी की घटनाएं बढ़ गयी है। आज भी चौकीदार अधिकांश
गांव में मौजूद हैं। लेकिन उनकी भूमिका बदल गयी है। कहीं पर वे थाने की शोभा बढ़ा
रहे हैं तो कहीं वरीय अधिकारियों के यहां डाक लाने ले जाने में लगे हुए हैं।
चौकीदारों को उनके मुख्य कार्य से विमुख कर दिया गया है।
इस संबंध में पुरैनी थानाध्यक्ष सुनील कुमार भगत ने बताया
कि आज भी रात्रि में ग्रामीण क्षेत्रो में चौकीदारी प्रथा कायम है। थाना में पहले
से अधिक कार्य बढ़ जाने के कारण दिन में भी इनसे काम लिया जाता है। बढ़ती आबादी के
अनुपात में पर्याप्त मात्रा में चौकीदार भी नहीं हैं।
Special: अँधेरी रातों में अब नही गूंजती 'जागते रहो' की आवाज
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 27, 2018
Rating:
