
राज्य में शराबबंदी के बाद आदिवासी समाज के कई लोगो के समक्ष रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। अब ये अपनी पारम्परिक महुआ शराब को बना कर बेच नहीं पा रहे हैं। जिला प्रशासन ने इनकी रोजी रोटी के लिए इन्हें प्रशिक्षण के अतिरिक्त ऋण आदि की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए योजना कार्यान्वित कर रही है। दूसरी ओर, ग्वालपाड़ा की आदि कला केंद्र ने अब इनकी विलुप्त हो रही पारंपरिक भित्ति चित्रकला को आधुनिक शैली में ढाल कर उसका व्यावसायीकरण की मुहिम छेड़ चुकी है। इसके लिए रविवार को मुख्यालय के कला केंद्र में आदिवासी चित्रकला की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
इस प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए उप विकास आयुक्त मिथिलेश कुमार ने कहा कि आदिवासियों की लोक कलाओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए जिला प्रशसन हर संभव कोशिश करेगी।इन्हें स्टेट बैंक के आर सैटी के जरिए प्रशिक्षण और फिर ऋण आवंटित किया जाएगा।इसके लिए इनके टोले में ही सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए इनकी मदद की जाएगी।
आदि कला केंद्र के संयोजक संजय कुमार यादव ने आदिवासियों की पारंपरिक चित्र कला को आधुनिक रूप में ढालने की कोशिश का वर्णन करते हुए कहा कि आदिवासी टोले की कई छात्राएं और महिलाएं इस कला को मूर्त रूप देने की कोशिश में लगी हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी वे लगातार आदि कला केंद्र में आकर प्रशिक्षण ले रही हैं।
प्रदर्शनी में उपस्थित दर्शकों में से कई कद्रदानों ने आदिवासी छात्राओं द्वारा निर्मित पेंटिंग को खरीदा। इस अवसर पर डा भूपेंद्र मधेपुरी, शंभू शरण भारतीय आदि उपस्थित थे।
मधेपुरा: आदिवासी समाज में प्रचलित आदि कला की स्थापना को ले प्रदर्शनी आयोजित
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 30, 2017
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