उदय और अस्त दोनों हैं जीवन की सच्चाई: आस्था के महापर्व छठ में सराबोर श्रद्धालु

बिहार और उत्तर प्रदेश में श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला आस्था के महापर्व छठ का आज दूसरा दिन यानि नहाय-खाय के बाद खरना का दिन है.
कल नही-खाय के साथ शुरू हुए चार दिनों के इस पर्व के दूसरे दिन आज खरना है जबकि कल  अस्ताचलगामी सूर्य और सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा. मधेपुरा में जहाँ घाटों की सफाई हो चुकी है और सजावट अंतिम चरण में हैं वहीँ जिला प्रशासन भी सभी घाटों का निरीक्षण कर मुस्तैद है. बाजारों में व्रत के सामन खरीदने के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ है और दूर-दराज रहने वाले लोग भी छत मनाने घरों को लौट चुके हैं.

जानिये छठ के बारे में: छठ संस्कृत के षष्ठी से बना है और छठ मईया षष्ठी देवी का ही हिन्दी रूपांतरण है. यह पर्व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनया जाता है. षष्ठी देवी की पूजा एवं व्रत का वर्णन महर्षि नारद एवं भगवान विष्णु की बातचीत में सामने आया है. छठ मईया या षष्ठी देवी या षष्ठी मंगल चंडी प्रकृतिस्वरूपा है. दरअसल सूर्य को अर्ध्य देने का मतलब यह होता है की डूबते और उगते सूर्य के गोल चक्र के समान ही षष्ठी मंगल चंडी का स्वरुप है. सूर्य को अर्ध्य का मतलब षष्ठी मंगल चंडी को अर्ध्य देना है. चूंकि षष्ठी मंगल चंडी प्रकृतिस्वरूपा है इसलिए इस पर्व में गन्ना, नारियल, हल्दी, अदरख, मूली और फल-फूल को चढाया जाता है. इसके पीछे तर्क होता है कित्वदीयं वस्तु गोविन्द, तुभ्यमेव समर्पये’. वस्तुत: इस मौसम में प्रकृति में फलने वाले सभी फल-फूल और वनस्पति को जल में खड़े होकर सूर्य को अर्पित किया जाता है.
      कहा जाता है कि षष्ठी मंगल चंडी की आराधना से पुत्रहीन को पुत्र की प्राप्ति और निर्धनों को धन-वैभव की प्राप्ति होती है. छठ प्रकृति की पूजा है. इस अवसर पर सूर्य भगवान के परोपकारी स्वरुप की पूजा की जाती है. परोपकारी स्वरुप इसलिए कि सूर्य को जीवन का देवता माना जाता है. इससे हर आम और खास, अमीर-गरीब और पेड़-पौधे तथा वनस्पति लाभान्वित होते हैं. सूर्य की उपासना से केवल ऊर्जा मिलती है बल्कि इससे आरोग्यता भी बढ़ती है. सूर्य की रौशनी से उपचार ही सूर्य चिकित्सा विधि कहलाती है. जल में खड़ा होकर सूर्य का सेवन करने से चर्म रोग में भी लाभ होता है. पुरानों तथा ग्रंथों में भी कई जगह सूर्य उपासना का उल्लेख है. छठ में चूंकि प्रकृति की पूजा होती है इसलिए इसके गीतों में पशु-पक्षी प्रेम की झांकी भी मिलती है. इसमें पशु-पक्षी मिट्टी के बनाए जाते हैं. छठ के मशहूर गीत केरवा जे फरल छै....सुग्गा मंडरायमें छठी मईया से सुगनी पर सहाय होने की कामना की जा रही है. छठ पर्व इस मायने में भी अनूठा है कि इसमें डूबते तथा उगते दोनों सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है. सूर्य बतलाता है कि उदय और अस्त दोनों जीवन की सच्चाई है. सूर्य हमें दैनिक जीवन में निरंतरता का भी पाठ पढाता है. ऐसे परोपकारी सूर्य को कोटिश: नमन.
(Report: Murari Singh)
उदय और अस्त दोनों हैं जीवन की सच्चाई: आस्था के महापर्व छठ में सराबोर श्रद्धालु उदय और अस्त दोनों हैं जीवन की सच्चाई: आस्था के महापर्व छठ में सराबोर श्रद्धालु Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 05, 2016 Rating: 5
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