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नाच रहा जंगल में मोर
रूप सलोना देख मोरनी
के मन में है हर्ष-हिलोर
नाच रहा जंगल में मोर”
-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
रिमझिम बारिश के बाद इन्द्रधनुष देखना किसे अच्छा नहीं लगता है और जब इन्द्रधनुष के साथ आपको मोर नाचता हुआ दिख जाय तो? वैसे तो ऐसा दृश्य देखना महज एक संयोग की बात है पर कोसी में एक ऐसा गाँव जरूर है जहाँ आपको इतने अधिक मोर नाचते दौड़ते मिल जायेंगे जिसकी कल्पना आपने नहीं की होगी.
सहरसा जिला में मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर उत्तर सत्तरकटैया प्रखंड का आरण गाँव अपने आप में एक ऐसी खासियत लिए हुआ है जो इलाके में शायद किसी और गाँव को नसीब नहीं. गाँव घुसते ही घर-दरवाजे और खेत-खलिहान में मोरों को उछलते-कूदते देखकर सहसा किसी को भी आश्चर्य हो सकता है.
कहाँ से आए हैं ये मोर?: ग्रामीण बताते हैं कि वो साल 1985-86 रहा होगा जब गाँव के ही अभिनन्दन यादव उर्फ़ कारी झा ने पंजाब के उधम सिंह के यहाँ से करीब आधा दर्जन मोर ले आये थे. बताते हैं कि इस काम में उन्हें गाँव
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बताते हैं कि इन मोरों की सुन्दरता देखकर दूसरे गाँव के लोग भी इन्हें ले जाना चाहा पर मोर और कहीं बस
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फसल को पहुंचाते हैं नुकसान: आरण में मोरों की अनुमानित संख्यां 700 से 1000 बताई जाती है. खेत, जंगल-झाड़, बसबिट्टी आदि इनके रहने का प्रमुख स्थान है. इसके अलावे ये दरवाजे, गोहाल आदि में भी अपना समय बिताते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि ये अब फसल औए शब्जी को नुकसान पहुँचाने लगे हैं. पर हम इन्हें मारते नहीं हैं, बस भगा देते हैं. क्योंकि एक तो हम जानते हैं कि इन पक्षियों के राजा मोर की वजह से हमारा गाँव कुछ अलग है और दूसरी बात कि मोर राष्ट्रीय पक्षी है और देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है तो फिर इन्हें बचाना और बढ़ाना भी तो हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए. देशभक्ति सबसे ऊपर है न!
(इसे भी पढ़ें: ये दिल मांगे ‘मोर’: संयोग ही था कि ‘चाइल्ड’ टिकट पर आरण लाए दो मोर नर-मादा थे)
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कोसी में मोरों को नाचते देखना है तो आइये आरण, यहाँ है राष्ट्रीय पक्षी की भरमार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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August 15, 2016
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