मधेपुरा में पशु चिकित्सा के नाम पर सिर्फ
खानापूरी हो रही है. जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों के पशु अस्पताल में न तो दवा
उपलब्ध है और न हीं है कोई चिकित्सक की ही व्यवस्था है. अस्पतालों में ताले लटके
रहते हैं. सारे सरकारी दावों की धज्जियाँ उडती नजर आती है और ग्रामीण पशु चिकित्सकों
और बाजार की दवाईओं के सहारे हैं पूरे जिले के पशुपालक.
माना जाता है कि कृषि के लिए भी पशुपालन
का धंधा अत्यंत आवश्यक होता है और भारत को लोग कृषि प्रदान देश कहते हैं, पर मधेपुरा
में बीमार पशु के इलाज के लिए यहाँ के पशुपालक दर-बदर भटकते रहते हैं. उचित दवा के
अभाव में प्रति वर्ष सैकड़ों पशुओं की जानें चली जाती हैं. सरकार और जिला प्रशासन मवेशी
अस्पतालों के विकास के लिए चिंतित नहीं दीखती है. जिले में पशुचिकित्सको की भी घोर
कमी है. बताते हैं कि लम्बे समय से पशुचिकित्सकों और कर्मियों की बहाली नहीं हुई
है. अधिकारी वर्षों से पशुपालकों को बीमार पशुओं के लिए दवाइयां मंगाने का कोरा
आश्वासन देते रहते हैं. ऐसे में जिले में पशुओं की जान झोला छाप डॉक्टरों के
जिम्मे रहने को मजबूर है.
सरकार भले ही धरातल
पर मानव स्वास्थ्य और पशु स्वास्थ्य की स्थिति में हमेशा सुधार करने की लम्बी-लम्बी
बातें करते रहे हैं, पर धरातल पर हकीकत कुछ और हीं बयां कर रही है. जब मधेपुरा के जिला
मुख्यालय के पशु अस्पताल में दवाइयां नहीं है तो ग्रामीण अस्पताल का क्या हाल हो
सकता है इसका अंदाजा आप और हम खुद लगा सकते हैं.
रहा न कोई देखनहार: प्रशासन की लापरवाही से पशु सो रहे मौत की नींद
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 16, 2015
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