मधेपुरा में पत्रकारिता का इतिहास भले ही गौरवमयी
रहा हो, पर वर्तमान में पत्रकारिता कलंकित हो रही है. पत्रकारिता का स्तर गिरा है
और कुछ चेहरों ने तो मधेपुरा में पत्रकारिता शब्द पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.
मधेपुरा
में इन दिनों पीत पत्रकारिता जमकर हो रही है और कुछ पत्रकार विशुद्ध दलाल और
ब्लैकमेलर के रूप को अख्तियार कर रहे हैं. पीड़ितों की समस्याओं से जुडे समाचार
संकलन की बजाय गलत लोगों के नाजायज कामों को अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से
करवाने की फिराक में रहते हैं. छोटे-छोटे विभिन्न कार्यालयों की खामियां पकड़कर
वहां ‘डील’ कर लेना इनके ‘परमकर्त्तव्य’ में शामिल हो चुका है.
जिले
में जहाँ अधिकाँश मीडियाकर्मी समाचार संकलन और जनसमस्याओं को सामने लाने के काम को
बखूबी निभा रहे हैं, वहीँ जिले और प्रखंडों में गिने-चुने पत्रकार सुबह से शाम तक समाहरणालय, प्रखंड कार्यालयों और थानों के आसपास मंडराते दिख रहे हैं. जाहिर है
बिना खबर की भी ‘खबर’ खोजने के पीछे का मकसद
अधिकारियों की चमचागिरी और लोगों के काम कराने के बहाने से उनसे उगाही करना इनका
मुख्य पेशा हो गया है. और इन चंद लोगों की वजह से कई लोग मधेपुरा में पूरी
पत्रकारिता कौम को संदेह के नजर से देख सकती है.
सबसे
हैरत की बात यह है कि ऐसे मीडियाकर्मी मीडिया हॉउस के द्वारा बनाये गए नियमों के
उलट लोगों से इस बात का ठेका भी ले लेते हैं कि अमुक खबर मैं छपवा दूंगा. जबकि
अधिकांश
चैनलों की ओर से यह निर्देश साफ़-साफ़ दिया जाता है कि यदि कोई पत्रकार आपको
यह कहता हो कि मैं अमुक खबर छपवा दूंगा या रूकवा दूंगा, तो इसकी सूचना तुरंत ‘नियंत्रण कार्यालय’ को दें. जाहिर है पत्रकारों का
काम सिर्फ समाचार संकलन तक ही सीमित होना चाहिए, न कि खबर छपवाने या रूकवाने की
गारंटी लेना उनका काम हो.
चैनलों की ओर से यह निर्देश साफ़-साफ़ दिया जाता है कि यदि कोई पत्रकार आपको
यह कहता हो कि मैं अमुक खबर छपवा दूंगा या रूकवा दूंगा, तो इसकी सूचना तुरंत ‘नियंत्रण कार्यालय’ को दें. जाहिर है पत्रकारों का
काम सिर्फ समाचार संकलन तक ही सीमित होना चाहिए, न कि खबर छपवाने या रूकवाने की
गारंटी लेना उनका काम हो.
अधिकारी भी हों सख्त: पत्रकारिता के काम के
अलावे किसी पत्रकार को अधिकारी द्वारा अधिक तरजीह देने का भ्रष्ट पत्रकार नाजायज
फायदा उठाते हैं. अधिकारियों से अपने मधुर सम्बन्ध का हवाला देकर ‘पार्टी’ से ‘डील’ करना ये बखूबी जानते हैं और
बहुत दिनों तक ‘अनुकूल
वातावरण’ मिलने पर ये ‘पत्रकारिता’ भूल जाते हैं और इनकी भूमिका ‘दलाल’ तक ही सीमित रह जाती है. पर फिर
भी इनके रूतबे में कमी नहीं आती है, क्योंकि ऐसे दलालों (जनरल वी. के. सिंह की
भाषा में ‘प्रेस्टीच्यूट’ presstitute) को ‘कैमरे’ और ‘लोगो’ की बदौलत अधिकारियों के वेश्म
तक जाने की इजाजत रहती है.
ऐसे में
समाज के जागरूक लोगों को चाहिए कि इनके करतूत की शिकायत इनके मीडिया हॉउस को दें
और अधिकारियों को भी चाहिए कि इन्हें ‘बेवजह तरजीह’ न दें ताकि स्वस्थ पत्रकारिता जिन्दा रह सके.
यहाँ हम
सम्बंधित लोगों को जानकारी देना चाहेंगे कि मधेपुरा टाइम्स ने विगत एक साल में
जिला मुख्यालय सहित प्रखंडों से करीब आधे दर्जन पत्रकारों को निष्काषित किया है
जिन्होंने हमारे ‘भरोसे
का क़त्ल’ किया. हम पाठकों और
अधिकारियों से विनम्र निवेदन करना चाहेंगे कि यदि कोई भी पत्रकार ‘मधेपुरा टाइम्स’ के नाम पर ऐसी किसी संदेहास्पद
गतिविधि में संलिप्त दिखे तो हमें इस सम्बन्ध में सीधा ई-मेल करें.
मधेपुरा में भी ‘प्रेस्टीच्यूशन’ (presstitution) ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 11, 2015
Rating:
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April 11, 2015
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