जब दशा ही नहीं सुधरे तो महिला दिवस का क्या है औचित्य?

आज संपूर्ण विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है. भले ही सन् 1910 से यह दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन आज 105 वर्षों के बाद भी क्या महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार बंद हुए हैं? क्या महिलाओं की दशा मे कुछ भी बदलाव आया है? अगर आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो जवाब होगा नही बिल्कुल नही. तो फिर क्या औचित्य रह जाता है ऐसे दिवस का जो महिलाओं को उनका अधिकार, उनकी इज्जत नही दिलवा सकता.
आज हमारे देश में हर 5 मिनट पर महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहे हैं. हर सेकंड हर मिनट हर घंटे महिलाएं मर मर कर जीने को मजबूर हैं. हर मिनट में एक बेटी की भ्रूण में हत्या कर दी जाती है, हर मिनट में एक लड़की बलात्कार जैसे घिनौने अपराध का शिकार हो रही है, हर मिनट में एक बहू दहेज़ के दावानल में जलाकर मार दी जाती हैं और हम महिलाएं फिर भी अपने ऊपर हो रहे जुर्म के खिलाफ एक लब्ज नहीं बोल सकतीं. अपने परिवार की इज्जत के खातिर वो क्या क्या नहीं करती, लेकिन बदले में उन्हें अपमान और घुटन के सिवा कुछ नहीं मिलता.
इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है हमारा पुरुष प्रधान समाज और समाज की पुरुषवादी मानसिकता. एक औरत जो एक साथ माँ, बहन और न जाने किन किन रिश्तों को बखूबी निभाती है, उस औरत को हमारे समाज ने उसका आत्मसम्मान देना भी मुनासिब नहीं समझा है .
          समाज महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार के लिए महिलाओं को ही दोषी मानता है, देश के बड़े बड़े नेता और धर्मगुरु भी लड़कियों के पहनावे और उसके चरित्र पर सवाल उठाने में कोई कसर नही रखते.
          भारत ही नहीं विश्व के लगभग सभी देशों में महिलाओं की कमोबोश वही स्थिति है . लाख कोशिशों के बावजूद महिलाओं को उनका हक़ नही मिल पा रहा, कई कानून भी बनाये जाते हैं लेकिन न तो इससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध कम हुए हैं न तो अपराधियों को सजा ही मिली है, और तो और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 27% का इजाफा हुआ है.
सीधी सी बात है कानून के भय से न तो आजतक अपराध कम हुए हैं न तो कम होंगे. अगर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार को सच में हम कम करना चाहते हैं तो हम और हमारे समाज को अपनी संकरी मानसिकता को बदलना होगा. जब तक हम लड़के और लड़कियों के बीच के अंतर को कम नहीं करते तब तक महिलाओं की दशा सुधरने वाली नहीं है. और जब महिलाओं की दशा बेहतर होगी, तभी महिला दिवस का मनाया जाना भी सही मायनों में सार्थक हो पायेगा.
जब दशा ही नहीं सुधरे तो महिला दिवस का क्या है औचित्य? जब दशा ही नहीं सुधरे तो महिला दिवस का क्या है औचित्य? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 08, 2015 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.