
नगर
परिषद् के वार्ड नं.17 के कई लोगों के होस इन दिनों उड़े हुए हैं. बताते हैं कि जिन
नालों को उन्होंने अपने खर्च पर बनवाया उन नालों के नाम पर राशि निकाल कर लूट-खसोट
कर ली गई है. वर्ष 2010-11 की योजना में वार्ड नं. 17 में ठाकुरबाड़ी के सामने
रंजीत सिन्हा के घर के आगे से अजीत घोष के घर के आगे तक गली में ढक्कन सहित नाला
निर्माण के नाम पर प्राक्कलन राशि 4 लाख 71 हजार रूपये एवं एकरारनामा की राशि 4
लाख 185 रूपये का काम संवेदन राज कुमार भारती के द्वारा नगर परिषद् के ‘कागज़’ पर शुरू किया गया जिसमे 3 लाख
27 हजार 621 रूपये का भुगतान भी करा लिया गया है.
लोगों
को जब इस बात की जानकारी मिली तो वे आग-बबूला हैं. कहते हैं इससे बड़ी ‘गिरहकटी’ और नहीं हो सकती. अभी जो छोटा नाला
बह रहा है वो वार्ड के लोगों ने घर के पानी निकास के लिए आपस में चंदा कर बनवाया
था. नाला पहले की हालत में है और पुराना हो जाने कि वजह से कहीं-कहीं टूट-फूट गया
है जिससे वे काफी परेशानी में हैं. इस नाले के पुनर्निर्माण को देखने यहाँ कोई
नहीं है. नाला बनवाने की बजाय उसके नाम पर इस तरह की लूट-खसोट बर्दाश्त से बाहर
है.
यही
नहीं इसी वार्ड में एक दूसरी योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ गई लगती है. बसंत
बाबू के घर होते हुए हरिबाबू एवं रमेश बाबू के घर तक ढक्कन सहित नाला निर्माण के
संविदाक मो० इकराम यासीन हैं. प्राकलन राशि है 2 लाख 42 हजार 850 रूपये और 01 लाख
68 हजार 617 रूपये का भुगतान भी हो चुका है. लेकिन यहाँ भी पानी पूर्व में बनाये
नाले से ही बह रहा है. बताते हैं कि इस नाले पर संवेदक द्वारा कहीं-कहीं छोटे-छोटे
ढक्कन देकर राशि का उठाव कर लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की गई है. मुहल्ले के
लोग कहते हैं इस लूट और गबन पर जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाने चाहिए.
वार्ड
नं. 17 के तीसरा नाला भी संवेदकों और जुड़े लोगों के ‘मानसिक सड़न’ का शिकार हो गया. पोरस दादा की
गली में ढक्कन सहित नाला निर्माण की प्राक्कलन राशि 02 लाख 46 हजार 338 रूपये थी
और एकरारनामा की राशि 02 लाख 09 हजार 387 रूपये. संवेदक दीप नारायण यादव द्वारा 01
लाख 92 हजार रूपये उठा भी लिए गए और कार्य पूर्ण भी दिखला दिया गया. पर इस नाले का
पानी अभी भी सड़क पर ही लगा रहता है. इस नाले को देखकर ‘नरक’ का बोध होता है और यदि लोग नगर
परिषद् को ‘नरक
परिषद्’ कहते हैं तो इसमें कहीं
कोई बुराई नहीं प्रतीत होता है.
वर्ष
2010-11 की इन योजनाओं में नजर आ रहे लूट-खसोट में किसका कितना हिस्सा था ये तो
जाँच के बाद ही पता चल सकता है, पर एक बात तय है कि घोटाले में जो जुड़े लोग जनता
का पैसा पचाकर घर में लजीज व्यंजन का स्वाद ले रहे होंगे, उन्हें जेल की खिचड़ी का
स्वाद भी जरूर मिलना चाहिए.
(वि० सं०)
हाल-ए-नगर परिषद्: नाले से भी रूपये निकाल कर रख लेते हैं जनता के ‘ठेकेदार’
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 16, 2015
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