वैसे तो एनजीओ शब्द का पूर्ण रूप नॉन गवर्नमेन्टल
ऑर्गेनाइजेशन यानि गैर सरकारी संगठन होता है, पर कोसी के इलाके के कई एनजीओ की
कार्यशैली को देखते हुए अब एनजीओ को नॉन गाईरेंटेड ऑर्गेनाइजेशन कहा जाना चाहिए
यानि ऐसा संस्थान जिसकी कोई गारंटी नहीं है कि ये कब क्या कर बैठे.
बताया
जाता है कि मधेपुरा जिले के गम्हरिया प्रखंड के औराही एकपरहा गाँव के करीब पांच सौ
लोग एक एनजीओ की ठगी के शिकार हो गए. ग्रामीणों ने प्रखंड के बीडीओ को एक आवेदन
देकर कहा है कि वर्ष 2012-13 में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत लोहिया योजना के
अंतर्गत जीले में निर्मित वैक्तयिक शौचालय की सूची में करीब 500 एपीएल तथा बीपीएल
लोगों के नाम से 3500/- रूपये प्रत्येक व्यक्ति जाली हस्ताक्षर कर निकाल लिया गया
है. ग्रामीणों का आरोप है कि न तो उनका शौचालय बन पाया है और न ही योजना का कुछ
अतापता है.
ग्रामीणों
ने ने प्रधानमंत्री स्वछता योजना के शौचालय के लिए तहत दस हजार रूपये मिलने की बात
जानी तो उन्होंने जब मुखिया के पास आवेदन देना चाहा तो उन्हें बताया गया कि उनलोगों
के नाम पर पूर्व में ही राशि का उठाव कर लिया गया है. ग्रामीण ठगे महसूस कर रहे
हैं और इस गबन की जाँच कराने की मांग कर रहे हैं. मुखिया का कहना है कि किसी एनजीओ
को उस समय यह काम कराने का भार मिला था और उसी ने ऐसा किया था.
सवाल
बड़ा है. ग्रामीणों के नाम से सरकार के भेजे रूपये कहाँ गए, ये पता करना मुश्किल
नहीं है. पूर्व में अधिकारियों और एनजीओ की मिलीभगत से गबन की बात उठती रही है.
बताया जा रहा है कि अभी भी जिले के कई गाँवों स्वच्छता अभियान के नाम पर दलाल
सक्रिय हैं और आम लोगों को मूर्ख बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं.
एकपरहा
के लोगों की शिकायत पर यदि जांच होती है तो जांच में कई बातें सामने आ सकती है. पर
जो भी हो, जिले के अधिकाँश एनजीओ के कार्यों की उच्चस्तरीय जांच हो तो वहां
समाजसेवा जैसी कोई बात नजर आने की सम्भावना कम ही है.
स्वच्छता अभियान के नाम पर एनजीओ ने ठगा लोगों को !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 17, 2015
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