ऑपरेशन चंडाल (भाग-1): सपनों के मार्केटिंग में धोखा खाने के बाद भी भविष्य तलाश रहे नेता जी

इतिहास गवाह है कि प्राचीन भारत के कुषाण काल से ही अस्तित्व में रहा मधेपुरा सक्रिय राजनीति का केन्द्र था. मौर्य साम्राज्य के दौरान चल रही राजनीति में मधेपुरा ने अहम भागीदारी निभाई थी. आजादी के आंदोलन में भी मधेपुरा की भूमिका सराहनीय रही और राजनीतिक रूप से ऊर्वर मधेपुरा ने समाजवादी स्व. भूपेन्द्र नारायण मंडल, स्व. कमलेश्वरी प्रसाद मंडल व स्व. बीपी मंडल सरीखे नेता पैदा किया जिन्होंने अपने कर्तव्यों से यह साबित कर दिया कि धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं होती और राजनीति से बड़ा कोई धर्म भी नहीं होता.  यानी राजनीति को जनता सेवा तथा देश सेवा का धर्म मानकर समाज को वैसा सपना दिखाया जिसमें सब कुछ चमक रहा था.
          समय बदला, राजनीति की परिभाषा भी बदल गई. अब राजनीति सेवा का धर्म नहीं रहा बल्कि जाति और धर्म के बीच बंधकर शोहरत व ताकत की प्रतीक बन गई. खाली पड़े मधेपुरा के राजनीतिक सल्तनत पर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की गिद्ध दृष्टि पड़ गई और स्व. भूपेन्द्र नारायण मंडल समेत अन्य नेताओं के विचारों का ध्वजाधारी बन कर उन्होंने मधेपुरा की सियासत पर कब्जा जमा लिया. खुले मंच से मधेपुरा की सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए पूर्वजों के शहादत की हर निशानियाँ को संजोकर रखने का वादा किया गया, लिहाजा राजनीति मे अस्था रखने वाले स्थानीय युवा नेता उनकी मुरीद हो गए. युवा नेताओं के बीच सपने बेचे गए.
      सपनों के इस मार्केटिंग में फंसे एक युवक ने तो जीवन दान ही कर दिया. राजनीति मे समाजवादी विचारों को सीढ़ी बनाकर सियासत के सपने देखने वाले जिले के मुरलीगंज थाना क्षेत्र के परमानंदपुर निवासी बिजेन्द्र  प्रसाद यादव को यह पता नहीं था कि राजनीति मे शुचिता ही उसके सपने चूर कर देगा.
                       05 नवंबर 1953 को स्व. सुखदेव प्रसाद यादव के घर पुत्र के रूप में पैदा हुए बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने गांव से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. रामहंस उच्च विद्यालय चतरा से मैट्रिक की परीक्षा पास कर टीपी कालेज मधेपुरा से स्नातक विज्ञान(प्रीवियस) की परीक्षा पास की. स्नातक फाईनल की परीक्षा का बहिष्कार कर उन्होंने 1974 में देश में सत्ता परिवर्तन हेतु चलाए गए जयप्रकाश नारायण आंदोलन में शामिल हो गए.  आंदोलन के दिनों को याद करते हुए श्री यादव ने बताया कि मधेपुरा में जयप्रकाश आंदोलन का नेतृत्व श्रीनगर निवासी रामचन्द्र यादव तथा खगड़िया के पूर्व एमपी अनिल यादव कर रहे थे. आंदोलन में पूर्व मंत्री विनायक प्रसाद यादव, पूर्व मंत्री अनुपलाल प्रसाद यादव, पूर्व मंत्री शंकर प्रसाद टेकरीवाल, बिहार सरकार के वर्तमान मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव, पार्षद विजय कुमार वर्मा, पूर्व सांसद दिनेश चन्द्र यादव, पूर्व मंत्री अशोक कुमार सिंह, पूर्व विधायक राधाकांत यादव, पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह, पूर्व विधायक परमेश्वरी प्रसाद निराला, पूर्व विधायक बमभोला यादव, पूर्व विधायक राजनंदन यादव, राजद के टिकट पर सिंहेश्वर से चुनाव लड़े सियाराम यादव, पूर्व प्रमुख कपिलदेव प्रसाद यादव, पूर्व मुखिया सुरेन्द्र प्रसाद यादव आदि ने भाग लिया.
       आंदोलन में सक्रिय श्री यादव अपने साथियों के साथ कई महीनों तक जेल की सजा काटी. कांग्रेस के कुषासन से तंग देष के लोगों को उबारने के लिए 1974 में बिहार से शुरू हुए जयप्रकाश आंदोलन की कोख से निकले राजनेताओं ने आज भले ही राजनीति के मीठे फल का स्वाद ले लिया हो किंतु समय के विपरीत रूख ने श्री यादव जैसे नेता के कैरियर पर तलवार लटका दिया. जनता
की सेवा का व्रत लेकर सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने तथा शादी नहीं करने के वादे को बखूबी निभाने वाले श्री यादव ने समाजवादी विचारों को राजनीति का मूलमंत्र बनाया. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने वर्ष 1977 से 2010 के बीच हुए विधान सभा चुनावों में टिकट की सख्त दावेदारी पेश की थी, किंतु पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उनके आग्रह को नकार दिया. या ऐसा कहें कि पार्टी फंड के नाम पर ली गई राशि ने समाजवाद के पुजारी व आर्थिक रूप से कमजोर बिजेन्द्र प्रसाद यादव की दावेदारी पर पानी फेर दी. हद तो तब हो गई जब 2005 के विधान सभा चुनाव में श्री यादव के नाम की घोषणा दो सौ कार्यकर्ताओं की सहमति के बाद पार्टी सुप्रीमों ने अनौपचारिक रूप से कर दी किन्तु रात के अंधेरे में नेता के बदले मिजाज ने एक बार फिर श्री यादव के सपने को खाक कर दिया. 2014 के विधान सभा चुनाव में भी अपनी ईमानदारी और समाजवाद की पोथी लेकर नेताओं के दरबार की खाक छानने वाले श्री यादव चुनाव लड़ने के सपने को पूरा नहीं कर पाए.  
         चाटुकारिता की दौड़ में कमजोर पांव वाले नेता समझे जाने वाले श्री यादव आज भी इस उम्मीद पर कायम हैं कि अच्छे लोगों के दिन आने वाले हैं. पैसा व पहुंच के बदौलत राजनीति करने वाले नेताओं की अब खैर नहीं है क्योंकि लोक सभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है. विपरीत काल ने भले ही नेताजी के सपनों को लील लिया है किंतु आज भी उनकी उम्मीद कायम हैं और वे 2015 में होने वाले चुनाव को ले फिर दावेदारी की तैयारी में हैं.
      मधेपुरा टाइम्स ने लंबे राजनीतिक अनुभव रखने वाले राजद नेता बिजेन्द्र प्रसाद यादव से उनके राजनैतिक जीवन के बारे में कई प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने सधे हुए अंदाज में जवाब दिया. सुनें उन्होंने क्या कहा? यहाँ क्लिक करें.
[क्या है ऑपरेशन चंडाल का अर्थ? पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.]
(रिपोर्ट: कुमारी मंजू)
ऑपरेशन चंडाल (भाग-1): सपनों के मार्केटिंग में धोखा खाने के बाद भी भविष्य तलाश रहे नेता जी ऑपरेशन चंडाल (भाग-1): सपनों के मार्केटिंग में धोखा खाने के बाद भी भविष्य तलाश रहे नेता जी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 30, 2014 Rating: 5

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