 माना कि दीपावली में पटाखे फोड़ने का प्रचलन है, पर
जिन कारणों से दीपावली मनाया जाता है उसमें पटाखों की कोई भूमिका नहीं है. दीपावली
यानि दीपों की आवली (श्रृंखला). पौराणिक कथा के अनुसार चौदह वर्षों के बनवास के
बाद जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने खुशी में दीप जलाये थे. बताया
जाता है कि उस युग में बारूद और पटाखे नहीं हुआ करते थे और अयोध्या समेत पूरे
रामराज्य की जनता ने सिर्फ दीप जलाए थे और मिठाइयां बांटी थी. दीपावली दीपों का
त्यौहार होना चाहिए न कि पटाखों का.
माना कि दीपावली में पटाखे फोड़ने का प्रचलन है, पर
जिन कारणों से दीपावली मनाया जाता है उसमें पटाखों की कोई भूमिका नहीं है. दीपावली
यानि दीपों की आवली (श्रृंखला). पौराणिक कथा के अनुसार चौदह वर्षों के बनवास के
बाद जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने खुशी में दीप जलाये थे. बताया
जाता है कि उस युग में बारूद और पटाखे नहीं हुआ करते थे और अयोध्या समेत पूरे
रामराज्य की जनता ने सिर्फ दीप जलाए थे और मिठाइयां बांटी थी. दीपावली दीपों का
त्यौहार होना चाहिए न कि पटाखों का.
      वैसे भी
मधेपुरा टाइम्स आपको 15 कारण बता रहा है जिसपर यदि आप निष्पक्ष होकर सोचेंगे तो
हमसे सहमत होने की कोशिश करेंगे.
- वायु प्रदूषण: पटाखों के प्रयोग से वायु में अनावश्यक तत्व मिल जाते हैं और इससे वायु प्रदूषण का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है.
- हानिकारक गैसों का जमाव: यदि पटाखों के प्रयोग के बाद बारिश या तेज हवा का बहाव जल्द न हो तो पटाखों से उत्सर्जित गैसों का जमाव लंबे समय तक वातावरण में रहता है जो मानव समेत जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए अहितकर होता है.
- बीमारी को बढ़ावा: पटाखों से उत्सर्जित सल्फर डायऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड समेत कई गैस साँसों की तकलीफ, जैसे दमा आदि के साथ कैंसर तक को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं.
- ध्वनि प्रदूषण: पटाखों के आवाज से ध्वनि प्रदूषण होते हैं जो कानों और दिल को गहरे ढंग से प्रभावित करते हैं.
- कचरा का जमाव: यदि आप स्वच्छता अभियान में शामिल होकर तस्वीरें खिंचवा रहे हैं तब तो आपको पटाखों को ना कहना ही चाहिए, क्योंकि पटाखों को जलाने के बाद कचरे की मात्रा में वृद्धि होती है.
- बच्चे, गभवती महिलाओं और बूढों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव: पटाखों की आवाज और इससे निकले गैस से शिशु, गर्भवती महिला और बूढों के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है. बहुत ज्यादा आवाज से बच्चे बहरे, गर्भवती महिलाओं के गर्भ के बच्चे विकृत और और बूढों के दिल कमजोर हो सकते हैं.
- पालतू जानवरों में भय: पटाखों के शोर से पालतू जानवर डरे-सहमे रहते हैं.
- बाल मजदूरी को बढ़ावा: पटाखों की अधिकाँश फैक्ट्रियों में बाल मजदूरों से
     मजदूरी कराई जाती है. यदि आप कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिलने पर
     खुशी मना रहे हैं तो बाल श्रम को बढ़ावा देने वाले इन पटाखा फैक्ट्री को
     हतोत्साहित करें और पटाखों को न कहें. जाती है. यदि आप कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिलने पर
     खुशी मना रहे हैं तो बाल श्रम को बढ़ावा देने वाले इन पटाखा फैक्ट्री को
     हतोत्साहित करें और पटाखों को न कहें.
- दीपावली की रात में में घायल होना: पटाखों से अक्सर बच्चों के जल जाने या गंभीर रूप में जख्मी होना आम बात है. कभी-कभी इसमें जान भी चली जाती है. यदि आपको अपने बच्चों से सचमुच प्यार है तो उन्हें समझाकर पटाखों से दूर करें.
- ग्लोबल वार्मिंग: ग्लोबल वार्मिंग आज दुनियां के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरा है. पटाखों से निकली गैसें इसे बढाती है और ग्लोबल वार्मिंग प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का खतरा हमेशा बढ़ाती है.
- आग लग जाना; पटाखों की दूकान या खासकर रॉकेट आदि जैसे पटाखों से आग लगने का खतरा हमेशा बना रहता है और इससे जानमाल का नुकसान होता है.
- परंपरा के खिलाफ है पटाखे फोडना: दीपावली में दीप जलाने की परंपरा रही है न कि पटाखे फोड़ने की.
- अपने या अभिभावक की गाढ़ी कमाई को फूंक देना: पटाखे फोडना उस रूपये में सीधे आग लगाने जैसा है जिससे आप अपने तथा परिवार की अन्य जरूरतों को पूरा कर खुशियाँ प्राप्त कर सकते हैं.
- फैंसी पटाखे आपके अहम की तुष्टि और गरीबों का मजाक: डिजायन-डिजायन के
     पटाखे फोडने को आप कहीं न कहीं अपना स्टेटस सिम्बल मान रहे हैं. आप ऐसा कर न
     सिर्फ उन गरीबों का मजाक उड़ा रहे हैं जिनकी औकात पटाखे फोड़ने की नहीं है या
     जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है. को आप कहीं न कहीं अपना स्टेटस सिम्बल मान रहे हैं. आप ऐसा कर न
     सिर्फ उन गरीबों का मजाक उड़ा रहे हैं जिनकी औकात पटाखे फोड़ने की नहीं है या
     जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है.
- जाने-अनजाने में देवी-देवताओं का अपमान: बहुत से पटाखों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनी रहती हैं. ऐसे में धार्मिक लोग एक तरफ मूर्ति पूजा और फोटो पूजा करते हैं और दूसरी तरफ पटाखा फोड़ते समय अनजाने में देवी-देवताओं के टुकड़े-टुकड़े कर उसे कचरा का ढेर बना कर सुबह में झाडू की भेंट चढ़ने छोड़ देते हैं.
इन 15 स्पष्ट कारणों के बाद
सोचने और कुछ करने की बारी आपकी है.
      (मधेपुरा
टाइम्स द्वारा जनहित में जारी)
15 कारण: जिसे पढकर इस दीपावली में आप पटाखों को कह देंगे न...
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