अजब-गजब: नि:वस्त्र होकर पूजते हैं बादर

|प्रवीण गोविन्द|26 अक्टूबर 2013|
भले ही आज विज्ञान बारिश नहीं होने पर कृत्रिम वर्षा करा लेता हो लेकिन मिथिला के लोग तो भिक्षाटन कर पानी बरसवा लेते हैं. अधिक बारिश होने पर नि:वस्त्र होकर बादर पूजने की भी प्रथा है. यह दुनिया के चांद पर बसने की सोच के आगे भले ही मिथ्या प्रतीत होती हो लेकिन यह प्रथा आज भी जारी है.
आप भी सुनिए बादर मनाने की कहानी: मिथिलांचल के लोग 21 वीं सदी में भी वर्षा के लिए जहां कागज, कपड़ा या मिट्टी की मूर्ति के कंधे में झोला लटकाकर भिक्षाटन करते हैं वहीं वर्षा को रोकने के लिए नि:वस्त्र होकर मेघ को पूजते हैं. जब लगातार बारिश नहीं होती तो यहां के लोग बादर को मनाने में लग जाते हैं. वहीं अधिक बारिश होने पर ननिहाल में जन्मे व्यक्ति नि:वस्त्र होकर मिट्टी के अंदर आग डालते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने पर मेघ का कोप शांत हो जाता है और बारिश रूक जाती है. बनगांव के किसान पप्पू झा, कर्णपुर के ढ़ोकन पासवान, चक डुमरिया के राधेश्याम मंडल, बलहा के मंटू कुमार, हरिराहा के दिगम्बर झा आदि ने बताया कि यह सदियों से चला आ रहा है.
टोने-टोटके की रीति पुरानी: बरसात के दिनों में जब वर्षा नहीं होती है, फसल सूखने लगती है, खेतों में दरारें पडऩे लगती है तो बारिश के लिए यहां के लोग मेघ को मनाने में जुट जाते हैं. तरह-तरह के शकुन-अपशकुन करते हैं। अधिक बारिश के लिए कहीं जट-जटिन के नाच तो कोसी के किनारे दीप भी जलाया जाता है. इलाके के लोगों का मानना है कि इससे खुश होकर मेघ राज पानी बरसाते हैं. कुल मिलाकर, सांस्कृतिक बिरासत के धनी मिथिला में अजब-गजब के टोने-टोटके की रीति पुरानी है.
(श्री गोविन्द दैनिक भास्कर से जुड़े हुए हैं।)
अजब-गजब: नि:वस्त्र होकर पूजते हैं बादर अजब-गजब: नि:वस्त्र होकर पूजते हैं बादर Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 26, 2013 Rating: 5

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