भूख को मारते-मारते मर गया नाथो

|बैजनाथपुर से लौटकर प्रवीण गोविन्द|01 अक्टूबर 2013|
सुप्रीम कोर्ट की आठ सदस्यीय जांच टीम द्वारा नाथो की भूख से ही हुई मौत की बात स्वीकारने के साथ ही जिला प्रशासन का गला फंस गया है। गौरतलब है कि मीडिया में छपी खबरों का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट की टीम शनिवार को बैजनाथपुर पहुंची। टीम ने जहां मृतक के पुत्र लव कुमार, बहू छोटी देवी, पड़ोसी बद्री स्वर्णकार व कारी देवी से पूछताछ की वहीं डीएम सहित अन्य अधिकारियों से भी महत्वपूर्ण जानकारी ली। जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आयुक्त के साथ ही बिहार सरकार के मुख्य सचिव को सौंपी जाएगी।
भूख से ही हुई नाथो की मौत: सुप्रीम कोर्ट के आयुक्त के सलाहकार रूपेश, सेंटर फॉर हेल्थ व रिसोर्स के निदेशक डा शकील, अर्थशास्त्री डा. मीरा दत्ता, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के पूर्व निदेशक समाजशास्त्री डा. एमएन कर्ण, संजय कुमार अधिवक्ता कुमारेश कुमार सिंह, पत्रकार निवेदिता व किशोर ने सघन जांच पड़ताल के बाद कहा कि नाथो की मौत भूख से ही हुई है। मौत का कारण टीबी नहीं है।
वाह बीडीओ साहब वाह : टीम नाथो के घर पर भी गई। जहां परिजनों के साथ ही ग्रामीणों से आवश्यक पूछताछ की। बीडीओ व मुखिया से जब मुख्यमंत्री अन्न कलश योजना के बाबत पूछा गया तो उनलोगों ने बताया कि उन्हें उक्त योजना की कोई जानकारी नहीं है। ग्रामीणों का कहना था कि पंचायत में छह माह से मनरेगा का भी कोई काम नहीं हुआ है। जून माह से ही खाद्यान नहीं मिला है सो अलग। इससे पूर्व टीम के सदस्यों ने सौरबाजार प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी से भी बात की। यहां बता दें कि नाथो की मौत के बाद जिला प्रशासन बीमारी से हुई मौत की बात कह मामले पर पर्दा डाल रहा था। धूमिल ने ठीक ही कहा है, भूख से मरा हुआ आदमी इस मौसम का सबसे अच्छा विज्ञापन है। नाथो मौत के बाद सुर्खियों में है।
सवाल-दर-सवाल:  नेताजी भी कहते हैं कि बिहार में विकास की हवा बह रही है। फिर क्यों जब
भूख आती थी तो नाथो उसे मार देता था। आखिर क्यों भूख को मारते-मारते वह मर गया। भले ही नाथो की मौत प्रशासन व सत्ता के लिए दिल्लगी हो, लेकिन यह बड़ा सवाल है कि आखिर कबतक नाथो जैसे लोग भूख के कारण मरते रहेंगे। सवाल यह भी- आखिर बीडीओ जैसे जिम्मेदार पद पर पदस्थापित अधिकारी को अन्न के अभाव से मर रहे लोगों के लिए संचालित अन्न कलश योजना की जानकारी क्यों नहीं है। नियमत: मुखिया को एक क्विंटल अनाज सुरक्षित रखना है। डीलर को ऐसे जरूरतमंद को अनाज मुहैया कराकर प्रशासन को सूचित करना है।
नाथो की नहीं हुई टीबी से मौत: नाथो स्वर्णकार की भूख से हुई मौत के बाद सौरबाजार प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. रवीन्द्र कुमार का यह बयान कि टीबी से मौत नहीं हुई है, ने भी जिला प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया है। बता दें कि स्वास्थ केन्द्र पर हुए इलाज के दम पर जिला प्रशासन नाथो की मौत टीबी से होने का दावा कर रहा था।
कहते हैं चिकित्सा पदाधिकारी: नाथो वर्ष 2011 में इलाज के लिए अस्पताल आया था। छह माह तक उसकी चिकित्सा भी की गयी। इलाज के दौरान वह बिल्कुल ठीक था। 13 मार्च, 2012 को उसे दोबारा भर्ती किया गया। 13 फरवरी, 2013 को जब जांच में एसप्यूटम निगेटिव पाए गए तो उसे रिलीज कर दिया गया। सो, टीबी से उसकी मौत की संभावना नहीं के बराबर है।
अन्न के अभाव में हुई मौत: बैजनाथपुर से लौटने के बाद पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना सहित अन्य ने कहा है कि नाथो के घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था। अन्न के अभाव में ही उसकी मौत हुई। जिला प्रशासन ने सच छिपाने के लिए मृतक का पोस्टमार्टम नहीं करवाया।
डीएम की सुनिए:  डीएम शशिभूषण कुमार ने बताया कि मिली जांच रिपोर्ट के बाद डीलर को निलंबित कर दिया गया है। प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की जा रही है। अभी की स्थिति में अदम गोंडवी की यह पंक्ति सटीक बैठती है-
'तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।Ó
(श्री गोविन्द दैनिक भास्कर से जुड़े हुए हैं।)
भूख को मारते-मारते मर गया नाथो भूख को मारते-मारते मर गया नाथो Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 01, 2013 Rating: 5

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