|सहरसा से प्रवीण गोविन्द|01 अक्टूबर 2013|
हर जगह गरीबी उन्मूलन की बात हो रही है, रहनुमाओं के पास उदाहरणों
की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन जमीनी सच्चाई; बीपीएल व अन्त्योदय के लाभुकों को अबतक सितम्बर माह का
अनाज उठाव नहीं हो सका है। सो, गरीब तबके के लोग कंकर वाले चावल का भात खाने को मजबूर हैं।
ठीक-ठाक चावल 28-30 रूपये किलो मिलता है। इधर, 15 रूपये वाला चावल लेने से 13-15 रूपये की बचत होती है जिससे नमक-तेल
का दाम निकल जाता है।
समय पर नहीं मिल पाता अनाज: एफसीआई व एसएफसी की मनमानी
के कारण डीलरों को समय पर खाद्यान्न नहीं मिल पा रहा है। ड्राफ्ट जमा करने के बाद भी
डीलरों को खाद्यान्न नहीं मिल पाने के कारण गरीबों को समय से अनाज नहीं मिल पाता। स्थिति
देखिए; सितम्बर
माह में अगस्त के राशन का उठाव हो रहा है। प्राय: हर साल दो-तीन माह का अनाज लैप्स
कर जाता है। 2012 में भी अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर का अनाज लैप्स कर चुका है।
पापी पेट का सवाल: बहरहाल, कोसी अंचल में इन दिनों 15 किलो रूपये प्रति किलो उपलब्ध
कंकर वाले चावल की मांग काफी बढ़ गयी है। उक्त चावल में 25 से 30 प्रतिशत कंकर रहा करता है। फिर भी
एक बड़ी आबादी इसी चावल का उपयोग कर रहे हैं। आखिर पापी पेट का जो सवाल है। गरीबों
के गले में भात अटक रही है।
कहते हैं एसडीओ: सदर अनुमंडल पदाधिकारी पंकज
दीक्षित ने कहा कि जनवितरण व्यवस्था में अराजकता बर्दाश्त नहीं की जायेगी। स्थिति का
जायजा ले रहे हैं। दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई की जायेगी।
(श्री गोविन्द दैनिक भास्कर से जुड़े हुए हैं।)
गले में अटक रहे भात, हो रही गरीबी उन्मूलन की बात
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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October 01, 2013
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