|वि० सं०|13 अगस्त 2013|
“मत पूछो मेरा दीवानापन
आकाश से ऊंची दिल की उड़न
तुझे देख के कहता है मेरा मन
कहीं आज किसी से
मोहब्बत न हो जाए”
आकाश से ऊंची दिल की उड़न
तुझे देख के कहता है मेरा मन
कहीं आज किसी से
मोहब्बत न हो जाए”
सन 1962
में बनी फिल्म ‘प्रोफ़ेसर’ के एक सुपरहिट गाने ‘ए गुलबदन, ए गुलबदन, फूलों की महक काँटों की चुभन’ की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ
मधेपुरा के एक प्रोफ़ेसर साहब के दिल में उतरती चली गई और जिंदगी के 61वें वसंत में
एक 35 वर्षीया विधवा के पास दिल हार बैठे. आज उम्र के आख़िरी पड़ाव पर तीन बच्चों के
पिता ने एक बच्ची की माँ के साथ जनम-जनम का साथ निभाने की कसम खाई है.
कहते
हैं कि निजी और व्यावसायिक जीवन में ‘सर’ काफी सफल माने जाते रहे हैं, पर पांच-छ: साल पूर्व पत्नी
के निधन के बाद अकेलापन इन्हें खाए जा रहा था. एक पुत्र की शादी की तो शहनाइयों की
गूँज इनके कानो में गूंजती रही और रिटायरमेंट से मात्र एक साल पूर्व खुद की
शहनाइयां भी बजवा ली. हालांकि कहते हैं कि नई पत्नी ने अपनी पुत्री के लिए कुछ लाख
रूपये प्रोफ़ेसर साहब को जमा करने को कह कर इनकी परीक्षा भी ली, पर हमेशा से दूसरों
को परीक्षा में अंक देने वाले प्रोफ़ेसर नई पत्नी के ‘लिटमस टेस्ट’ में पास हो गए.
हालांकि
इनके सहयोगियों को और कुछ नहीं तो कम से कम ये बात तो अखर ही रही है कि ‘सर’ अपनी नई पत्नी से किसी को
मिलवाने में कोताही बरतते हैं, पर शिकायतकर्ता ये नहीं जानते कि इस उम्र की शादी में
कोई अपनी जीवनसाथी को खोना नहीं चाहता.
61 साल के प्रोफ़ेसर ने जीवनसंगिनी बनाया 35 वर्षीया विधवा को
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 13, 2013
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