''दहलीज पर खडी औरत क्या सोचती है ?-नम आँखों से निहारती, आकाश का कोना -कोना -उड़ने को आकुल, व्याकुल --पंख तौलती है -तलाशती है राहें --मुक्ति के
द्वार की ''---
मुक्ति के द्वार की तलाश आज भी जारी है -वह कभी मुक्त
नहीं हो सकी -रुढियों से-,परम्पराओं से, -सामाजिक विसंगतियों से, अपनी ही कारा में कैद ,भारत की नारी आज भी अपने जीवन संघर्षों की लड़ाई लड़ रही है
--सदियों की गुलामी से उत्पीडित -प्रताड़ित ,रुढियों की श्रृंखलाओं में बंदी -उसकी आँखों ने एक -सपना जरुर देखा था --- जब देश आजाद होगा-अपनी धरती ,अपना आकाश अपने सामाजिक दायरों में वह भी सम्मानित होगी,--उसके भी सपनों ,उम्मीदों को नए पंख मिलेंगे,पर उनका यह सपना कभी साकार नहीं हो पाया,-अपने अधूरे सपनो के सच होने की उम्मीद लिए महिलाएं देश की स्वतंत्रता के
संघर्ष में भी भागीदार बन जूझती रहीं-सामाजिक
,राजनीतिक ,चुनौतियों से ,-अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए -बलिवेदी पर चढ़ मृत्यु को भी गले लगाया
पर हतभाग्य !--

सामाजिक , वर्जनाओं के भंवर में कैद थीं -आज भी हैं ,पहले सती प्रथा के नाम पर पति के साथ जला दिए जाने की क्रूर परंपरा थी , आज भी महिलाएं जलाई जाती हैं -कभी दहेज़ के नाम पर , तो कभी पुरुष प्रधान सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होकर,-.बालिका - विवाह की अमानवीय प्रथा में कितनी ही नन्हीं ,मासूम बालिकाएं बलिदान हो जाती थीं --आज भी अबोध

जो रही भाल का तिलक उसे ,
देते फांसी के फंदे क्यों ?
जो घर आंगन का मान बनी ,
उससे नफरत के धंधे क्यों ?
फिर क्यों दहेज़ की बेदी पर ,
बेटियां जलाई जाती है ,
मुट्ठी भर सिक्कों की खातिर,
छत से फिंकवाई जाती हैं ?
(क्रमश:)
पद्मा मिश्रा
LIG 114, रो हॉउस, आदित्यपुर-2, जमशेदपुर-13
कितने आजाद महिलाओं के सपने ! कल -आज -और कल- (भाग-1)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 20, 2013
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आपने बहुत अच्छे प्रयास किये है। लयबद्धता का संतुलन दिखाई देता है सा। आपका आभार सा।
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आपने सुन्दर शब्दों से प्रारम्भ कर कष्टों को शामिल कर लिया। क्योंकि लक्ष्य आपने पहले से ही निर्धारित कर रखा था। लक्ष्य (उद्देश्य) सुंदर हो और पथ (रचना) आपका वैसे ही सुंदर है।
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दुनियाँ जहां की गंदगी को स्त्री क्यों लादे जा रही है। पानी नाली में भी बहता है और नदी में भी बहता है। वर्षा के द्वारा पानी की बूंद का सफ़र बेहद सुहाना होता है। फिर हम क्यों नाली की कहानी को विस्तार दें !
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व्याखानों से स्वतंत्रता या स्वछंदता नहीं है। अपने जीवन के आंतरिक स्नेह से युक्त विचारों में समझ और विश्वास युक्त जीवन के सपने बनाकर व्यवहार में साकार करने का क्रम ही समाधान है सा।
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बुरा लगने पर आपके भगवान् को मेरी शिकायत कर देना, वह मुझे समझा देगा सा। ऐसे प्रयोग भी करते रहना चाहिए। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं सा.. धन्यवाद।
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