मधेपुरा की हालत इनदिनों नारकीय है. जिले में लगातार
बारिश हो रही है और कहीं से इस बारिस के पानी के निकासी की व्यवस्था शहर के
महानुभावों ने अब तक नहीं कराई है. मधेपुरा को जिला बने 32 साल हो गए. तब से यहाँ
के उद्धारकों के बाल-बच्चों को भी बाल-बच्चे हो गए होंगे. पर किसी माननीय सांसद,
किसी माननीय विधायक, किसी माननीय नगर परिषद् अध्यक्ष और किसी माननीय जिलाधिकारी के
जेहन में प्राथमिकता देकर शहर को जल-जमाव की समस्या से निजात दिलाने की नहीं सूझी.
हाँ, कुछ को यदि सूझी तो कागजों पर प्लान बने, फंडों की बंदरबांट की योजना बनी और
जाहिर सी बात है जो होना था वो हुआ. आज मधेपुरा गड्ढे में तब्दील है और सड़क पर
चलने वाले ही जानते हैं कि इसका शायद ही कोई स्थायी समाधान है, क्योंकि साफ़ नहीं
है यहाँ के जनप्रतिनिधियों की नीयत.
नगर
परिषद् क्षेत्र की स्थिति नर्क जैसी है. कई जगह नाले खुले हैं, कई जगह टूटे हैं.
छोटी दुर्घटनाएं आम हैं. चलने वाले जहाँ गिरकर मुंह तुड़वा रहे हैं वहीं कई
वार्ड पार्षद घर में दुबक कर मुंह छुपाये
हुए हैं. ‘थेथरोलॉजी’ में मास्टर डिग्री हासिल किये
ये जनप्रतिनधि अगले फंड-लूट का इन्तजार कर रहे हैं ताकि अपने बचे घर को बनाकर
सुसज्जित कर सकें. अध्यक्ष के चुनाव के समय मिले पैसे अब ये और इनके बीबी-बच्चे
खा-पका चुके हैं.
लोगों
ने मिलकर, भावना में बहकर, जातियों को देखकर, कुछ पैसे भी खाकर, उम्मीदवारों के
दलालों की मीठी-मीठी बातों में आकर जब घटिया जनप्रतिनिधि को चुना है तो ऐसे में
अपने कर्मों का हिसाब मधेपुरा की जनता को भुगतना ही होगा.
बड़े-बड़े लोगों के मधेपुरा में बड़े-बड़े लूट के कारण बड़े-बड़े गड्ढे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 08, 2013
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बच्चा जब होश संभालता है तो उसके माँ -बाप उसे कहते हैं कि बेटा जल्दी से बड़ा होकर ,पढ़ -लिख कर बहुत बड़ा आदमी बनना /बहुत बड़ा अफसर बनना और लोगो की सेवा करना / जनता जनार्दन के सुख सुविधा का ख्याल रखना और हमारा मान बढ़ाना / तभी तो बच्चा सोचता होगा कि बड़े बड़े अफसर जो होते हैं ,वे बहुत बड़े आदमी होते हैं ,बहुत पावर होता है उनके पास /आज जब वही बच्चा अपनी सायकिल से या पैदल इन गड्ढों में तब्दील सड़कों से गुजरते हुए अपने स्कुल को जाता है तो यही सोचता होगा कि मेरे माँ-बाप भी न जाने क्या क्या सोचते रहते हैं /
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