कहते हैं-
“साजिशें
कितनी भी घनी क्यों न हो
उनकी उम्र बहुत छोटी होती है;
झूठ के पाँव नहीं होते;
सत्य मौन रहकर भी दहाड़ता है;
और
खुदा के घर देर है, अंधेर नहीं.”
लेकिन
यहाँ तो सब उल्टा दीखता है-
साजिशों की उम्र: 16 साल से भी बड़ी हो गई,
झूठ: मुजफ्फरपुर से चलकर दिल्ली पहुँच गया,
सच: मौन साधे सब देख रहा है...
और
खुदा के घर भी काफी देर हो गई,
देखना सिर्फ बाक़ी है यही,
कि वहाँ अंधेर चलता है या नहीं?
क्योंकि मेरा मानना है कि-
“सत्य
बाधित तो हो सकता है
पर पराजित कभी नहीं.”
--आनंद मोहन (पूर्व सांसद)
मंडल कारा, सहरसा.
एहसास///आनंद मोहन (पूर्व सांसद)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 16, 2012
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