जिले में स्वास्थ्य विभाग के सिर्फ दावे बड़े-बड़े
हैं, करनी इनकी इतनी छोटी है कि जानने वालों को इन पर शर्म आने लगती है. जिले भर
में जहाँ नाजायज डॉक्टरों की बड़ी फ़ौज बेधड़क रोगियों का शोषण कर रही है और कमीशन
कार्यालय तक पहुंचाती है वहीं सरकारी अस्पतालों को चूना लगाने में स्वास्थ्य विभाग
का कोई सानी नहीं.
जिले
के कई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा उपकेन्द्र का हाल तो इतना बुरा है कि यदि
स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारी जरा भी गंभीर होते तो ये खर्राटे मारकर रात में
सुकून से नहीं सो पाते. आलमनगर के नरथुआ स्वास्थ्य उपकेन्द्र का ही हाल तो जरा
देखिये. तकरीबन पन्द्रह साल पूर्व ही नरथुआ के इस केन्द्र का नाम जिले के
स्वास्थ्य केन्द्र की सूची में जुड़ गया था. पर आज इसकी बदहाली को देखकर ग्रामीणों
का गुस्सा इस बदहाली के जिम्मेवार लोगों पर फूट पड़ता है. ताले बंद रहते हैं यहाँ
और कोई इसे देखने वाला नहीं है. गाँव के लोग अपने घरों में होने वाले बीमारों को
लेकर बाहर दौड़ते हैं और कुछ की हालत तो इतनी गंभीर हो जाती है तो उन्हें बचा पाना
मुश्किल होता है.
इस
बर्बाद स्वास्थ्य केन्द्र के कार्यालय को तो कब का ताला लग चुका है. चिकित्सकों के
लिए बनाये गए कक्ष मकड़ों का घर बन चुका है तो अर्धनिर्मित मकान प्रशासन के लूट और
निष्क्रियता की कहानी बयां कर रहे हैं. ग्रामीण जवाहर यादव कहते हैं कि यहाँ
पदस्थापित डॉक्टर सिविल सर्जन की मेहरबानी से घर बैठकर वेतन उठा रहा होगा और गाँव
वालों को ये भी नहीं पता है कि कौन और कितने लोग यहाँ पदस्थापित हैं. जबकि अन्य
विकास के मामलों यथा बिजली, सड़क आदि में नरथुआ की स्थिति संतोषप्रद है. ग्रामीण
सिविल सर्जन पर आरोप लगाते कहते हैं कि वे सिर्फ जिला मुख्यालय, घैलाढ़, सिंघेश्वर
या अगल-बगल घुमते रहते हैं उन्हें इस इलाके की सुध कहाँ है.
गाँव
के एक युवक शंकर की बातों में दम नजर आता है. कहता है “पेपर वाले के लिखने से इस विभाग
को क्या फर्क पड़ेगा. हरामखोरी की आदत लग चुकी है ऑफिसर लोगों को. गाली सुनेंगे,
मार खायेंगे, फिर भी घूस खाने की आदत छूट नहीं सकती है. और जब तक स्वास्थ्य विभाग
में जिला स्तर तक घूसखोरी जिन्दा रहेगा, गांव में आदमी मरते रहेंगे”.
सिविल सर्जन साहब ! एक बार नरथुआ स्वास्थ्य केन्द्र भी आइये..
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 19, 2012
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