क्या रावण दहन जब तक है भ्रष्टाचार का बोलबाला ?


कुमार अंगद/25/10/2012
विजयादशमी के पवन अवसर पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सम्पूर्ण देश में रावण दहन का अनेकों कार्यक्रम आयोजित किया गया है. दशहरा के अंतिम दिन आयोजित रावण दहन के इस कार्यक्रम में  करोड़ों देशवासी शरीक होते हैं और इस कार्यक्रम का अपने-अपने अंदाज में लुत्फ़ उठाते हैं और चित्रण भी करते हैं. मूलत: रावण दहन के इस कार्यक्रम का आयोजन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में किया जाता रहा है. कुल मिलकर इस कार्यक्रम में हम सभी सामान्य रूप से रावण का चित्रण एक अत्याचारी एवं दुराचारी पुरुष से करते हैं जिनी कार्यशैली में मनमानापन था और वह जनहित में न्यायसंगत कार्य नहीं करता था.भगवान श्री राम के हाथों बढ़ होने के बाद बुराई पर अच्छाई के रूप में यह सांकेतिक कार्यक्रम हमारे देश में मनाया जाने लगा.
            परंपरागत तरीके से इसे उत्सव की सीमा में बांध कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देना हमारी सबसे बड़ी भूल है. लगातार हुए इस भूल के कारण ही आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार रूपी रावण कई रूपों में अपना फन फैला चुका है जिसके दंश से आमजन त्राहिमाम है.
            वर्तमान में यदि हम गहराई से पड़ताल करते हैं तो बेशक यह कहा जा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो भ्रष्टाचार से अछूता हो. यानि पूरी की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था भ्रष्टाचार की चपेट में. नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार का बोलबाला और चपेट में अक्सर गरीब किसान और मध्यम वर्गीय लोग.
            कई छोटे बड़े घोटाले के अलावे राष्ट्रीय स्तर पर उजागर हुए स्टाम्प घोटाला, यूरिया घोटाला, चारा घोटाला, अलकतरा घोटाला, रक्षा सौदा घोटाला, टेलीकॉम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जमीन घोटाला और अब कोयला ब्लॉक आबंटन घोटाला काफी सुर्ख़ियों में रहा है. परन्तु समय के अंतराल के साथ ये मलीन होती जाती है और परत-दर-परत फाइलें दबती चली जाती हैं. ऐसी स्थिति में विकास लक्ष्य से कोसों दूर चला जाता है.
            उत्पन्न इस भयावह स्थिति के लिए हम सभी जिम्मेवार हैं क्योंकि हम सभी अपने सामजिक दायित्वों एवं कर्तव्यों को प्राथमिकता न देकर अपनी व्यक्तिगत गतिविधियों में ही अत्यधिक दिलचस्पी रखते हैं. उल्लेखनीय है कि रावण दहन के उक्त कार्यक्रम में हम सभी शरीक तो होते हैं परन्तु उनसे सीख नहीं लेते हैं. जरूरत है जनहित के कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने की तब ही भ्रष्टाचार रूपी रावण का खात्मा हो पायेगा और विकास की रफ़्तार तेज होगी.
क्या रावण दहन जब तक है भ्रष्टाचार का बोलबाला ? क्या रावण दहन जब तक है भ्रष्टाचार का बोलबाला ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 25, 2012 Rating: 5

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