मिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
तुम्हारे ख्याल,तुम्हारे एहसास
इस तरह लिपटे है मुझसे.....
कि किसी और का
एहसास मुझे छूता ही नही......
हर मोड़ हर राह कि....
मंजिल तुम्ही को देखती है.....मैं....
तुम्हारे साथ जीती हूँ मैं....
तुम गुज़रते हो जिस राह से,
उन्ही कदमो के निशाँ पर चलती हूँ मैं.......
जब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
हर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....
हर खुशी,हर गम में,
अपने हर सवाल का जवाब
तुमसे ही पूछती हूँ मैं.....
तुम कहो न कहो तुम.....
मुझे चाहते हो....
तुम्हारी आखों में पढ़ सकती हूँ मैं..........
जब कलम उठाती हूँ मैं,
तुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!
तुम्हारे ख्याल,तुम्हारे एहसास
इस तरह लिपटे है मुझसे.....
कि किसी और का
एहसास मुझे छूता ही नही......
हर मोड़ हर राह कि....
मंजिल तुम्ही को देखती है.....मैं....
तुम्हारे साथ जीती हूँ मैं....
तुम गुज़रते हो जिस राह से,
उन्ही कदमो के निशाँ पर चलती हूँ मैं.......
जब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
हर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....
हर खुशी,हर गम में,
अपने हर सवाल का जवाब
तुमसे ही पूछती हूँ मैं.....
तुम कहो न कहो तुम.....
मुझे चाहते हो....
तुम्हारी आखों में पढ़ सकती हूँ मैं..........

जब कलम उठाती हूँ मैं,
तुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!
--सुषमा 'आहुति', कानपुर
तुम्ही को ढूढती हूँ मैं.........!!!///सुषमा आहुति
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 11, 2012
Rating:
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 11, 2012
Rating:


अच्छी कविता है ...
ReplyDeleteपर कविता नहीं एक पत्र है ये ; शायद |
तुम्ही से रूठती हूँ,.....nice...
ReplyDelete