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| कृतराज(बाएं से दूसरा) | 
राकेश सिंह/१४ दिसंबर २०११
२२ अगस्त २०१० से गायब होनहार रंगकर्मी का मामला दब गया लगता है.छात्र संगठनों की अब कोई आवाज इस मामले पर शहर में सुनाई नहीं पड़ती है.चरणबद्ध आंदोलन के नतीजे का कहीं कोई अता-पता नहीं दीखता है.गत २५ अक्टूबर को मधेपुरा के एसपी ने छात्र संगठनों के साथ बैठक कर तीन महीने का समय माँगा था,पर दो महीने बीतने जा रहे हैं और प्रगति के बारे में कुछ भी खुल कर नहीं बताया जा रहा है.
   कृत का परिवार पुलिस की प्रगति पर निराश दिख रहा है.पिता गोपाल मुखिया ने दबी जुबान से मधेपुरा टाइम्स को बताया कि आंदोलनकारियों में से कुछ को मिला लिया गया है.सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कृतराज के गायब होने के मामले में जहाँ विभिन्न संगठनों ने पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद की थी,अब उनमे से कुछ ने कुछ ले-देकर इस मामले पर आवाज न उठाने का मन बना लिया है.मधेपुरा की राजनीति शायद कुछ इसी तरह की है.यहाँ कुछ नेता पेट पोसने के  लिए नेतागिरी करते हैं.आंदोलन करना और पैसे मिल जाने पर खुश होकर होकर आंदोलन समाप्त कर देना इनका चरित्र है.जो भी हो इस मामले पर छात्र संगठनों के मीडिया प्रभारी हर्षबर्धन सिंह राठौर दृढ़ दिखाई देते हैं.उनका कहना है कि जैसे ही उन्हें इस बात का अंदेशा होगा कि पुलिस इस मामले में ढिलाई बरत रही है,वे पुन:सड़कों पर उतरेंगे.सही जांच उनका मकसद है.हालांकि उन्होंने भी ये माना कि कुछ ऐसे लोग जिनका पुलिस प्रशासन से छत्तीस का आंकड़ा था,ने छात्र संगठनों के कंधे पर बन्दूक रखकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया,जिन्हें आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया दिया.
लिए नेतागिरी करते हैं.आंदोलन करना और पैसे मिल जाने पर खुश होकर होकर आंदोलन समाप्त कर देना इनका चरित्र है.जो भी हो इस मामले पर छात्र संगठनों के मीडिया प्रभारी हर्षबर्धन सिंह राठौर दृढ़ दिखाई देते हैं.उनका कहना है कि जैसे ही उन्हें इस बात का अंदेशा होगा कि पुलिस इस मामले में ढिलाई बरत रही है,वे पुन:सड़कों पर उतरेंगे.सही जांच उनका मकसद है.हालांकि उन्होंने भी ये माना कि कुछ ऐसे लोग जिनका पुलिस प्रशासन से छत्तीस का आंकड़ा था,ने छात्र संगठनों के कंधे पर बन्दूक रखकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया,जिन्हें आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया दिया.
 लिए नेतागिरी करते हैं.आंदोलन करना और पैसे मिल जाने पर खुश होकर होकर आंदोलन समाप्त कर देना इनका चरित्र है.जो भी हो इस मामले पर छात्र संगठनों के मीडिया प्रभारी हर्षबर्धन सिंह राठौर दृढ़ दिखाई देते हैं.उनका कहना है कि जैसे ही उन्हें इस बात का अंदेशा होगा कि पुलिस इस मामले में ढिलाई बरत रही है,वे पुन:सड़कों पर उतरेंगे.सही जांच उनका मकसद है.हालांकि उन्होंने भी ये माना कि कुछ ऐसे लोग जिनका पुलिस प्रशासन से छत्तीस का आंकड़ा था,ने छात्र संगठनों के कंधे पर बन्दूक रखकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया,जिन्हें आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया दिया.
लिए नेतागिरी करते हैं.आंदोलन करना और पैसे मिल जाने पर खुश होकर होकर आंदोलन समाप्त कर देना इनका चरित्र है.जो भी हो इस मामले पर छात्र संगठनों के मीडिया प्रभारी हर्षबर्धन सिंह राठौर दृढ़ दिखाई देते हैं.उनका कहना है कि जैसे ही उन्हें इस बात का अंदेशा होगा कि पुलिस इस मामले में ढिलाई बरत रही है,वे पुन:सड़कों पर उतरेंगे.सही जांच उनका मकसद है.हालांकि उन्होंने भी ये माना कि कुछ ऐसे लोग जिनका पुलिस प्रशासन से छत्तीस का आंकड़ा था,ने छात्र संगठनों के कंधे पर बन्दूक रखकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया,जिन्हें आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया दिया.|  | 
| ज्योति:हिना पर है शक | 
   मुख्यमंत्री की यात्रा को लेकर मधेपुरा की पुलिस प्रशासन भी अभी व्यस्त है और कृत के मामले पर छात्र संगठनों को १५ दिसंबर को मिलने का समय दिया गया है.सूत्रों का ये भी मानना है कि मामले की अग्रिम प्रगति से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रेम-प्रसंग से जुड़े इस मामले में हिना के परिवार वालों की गिरफ्तारी हो सकती है.वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मधेपुरा के कुछ तथाकथित वीआईपी लोग, जिन्होंने इसे प्रेस्टिज इश्यू बना रखा है,अंतिम क्षण तक जांच को सही दिशा में न जाने देने का प्रयास कर सकते हैं.
    दूसरी तरफ गायब कृतराज की बहन ज्योति ने मधेपुरा टाइम्स को बताया कि कृतराज के गायब होने के पूर्व १७ जुलाई को कृत और हिना घर से भाग गए थे और भागकर पटना में गुप्ता जी,वैशाली में स्नेहा और मधेपुरा में अमित के यहाँ रहे थे.पर जब १७ नवंबर को वह कृत को खोजने के सिलसिले में बिहारीगंज जाकर हिना से मिली तो हिना ने कृत को जानने से भी इनकार कर दिया था.
      अब देखना ये है कि क्या पुलिस इस मामले से जुड़े सच को उजागर करने में कामयाब हो पाती है या फिर दवाब के चलते कृतराज के गायब होने का मामला मधेपुरा के लोगों के लिए एक पहेली बनकर ही रह जाता है?
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क्या कृतराज का मामला राजनीतिकरण का शिकार हो गया?
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December 14, 2011
 
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